इस पार्क को देखने पर ऐसा लगता है कि शायद महीनों से यहां सफाई तक नहीं की गई। पूरे पार्क परिसर में कचरे और पत्तों के ढेर लगे हैं। कंटीली झाडिय़ों और मिट्टी के ढेरों से घिरा यह पार्क किसी जंगल से कम नजर नहीं आता। कहीं भी हरी घास का नाम तक नहीं है। ऊबड़-खाबड़ जमीन पर उगी खरतपवार के साथ लोगों द्वारा फेकें गए डिस्पोजल व अन्य कचरे के ढेर लगे हैं। इस पत्तों और झाडिय़ों के बीच जहरीले जीवों का भी खतरा मंडराता रहता है। वहीं दीवार के पास स्थित एक सूखा कुआं और उसके पास खोदा गया खुला तिकोना गड्ढा देखकर ऐसा लगता है कि यहां हॉरर फिल्म का सेट तैयार किया गया है। आज तक किसी ने इसे सही कराने की जहमत तक नहीं उठाई। जबकि कलक्ट्रेट परिसर में पार्क ऐसा होना चाहिए कि जहां हरियाली हो, सुकून हो और लोगों का वहां बैठने- घूमने का मन करे।
लोगों ने बताया कि प्रशासन को चाहिए कि किसी कर्मचारी को यहां की देखरेख और सफाई के लिए नियुक्त करे, पार्क में प्रतिदिन पानी की छिड़काव हो, और हरी-भरी घास के बीच क्यारियों में तरह-तरह के फूलों के पौधे हो तो इस स्थान की सूरत ही बदल जाएगी। भीषण, तपती गर्मियों में यह बगीचा लोगों के सुकून की जगह बन जाएगा। इस पार्क की चारदीवारी भी अंदर की तरफ से जर्जर हो चुकी है, ईंटें और चूना झड़ रहा है। इन पर लोहे की रैङ्क्षलग भी अटकी हुई सी दिखती है। हालांकि बाहर पुताई के कारण अंदर का नजारा नहीं दिखाई देता। प्रशासन को इसकी चारदीवारी की मरम्मत कर इसके अंदर भांति-भांति के शिक्षाप्रद भित्ती चित्र का अंकन किया जा सकता है, ताकि लोगों को कुछ शिक्षाप्रद जानकारी मिल सके।