जानकारी के मुताबिक सरकार के निर्देश पर करीब चार-पांच साल पहले बाल श्रमिकों को चिन्हित करने के लिए सर्वे करवाया गया था। जिसमें चूरू जिले में करीब 1700 बाल श्रमिकों की पहचान की गई थी। सरकार का इसके पीछे उद्देश्य था कि इन बालकों को मुख्य धारा में जोड़कर पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था कराई जाए। इसके लिए शिक्षा विभाग को जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन सर्वे के बाद में दोनों ही विभाग इस काम को भूल चुके हैं, एक-दूसरे पर जिम्मेदारियां डाल रहे हैं।
थानेवार हुई कार्रवाई एएचटीयू के अधिकारियों की माने तो पहले कार्रवाई कम होती थी, लेकिन 2017 के बाद में कार्ययोजना तैयार कर थानेवार कार्रवाई की। एएचटीयू के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2017 में 40 बच्चों को मुक्त कराया गया, 2018 में 15, वर्ष 2019 में 8, वर्ष 2020 में 9 व इस वर्ष अबतक 9 बच्चों को बालश्रम करते हुए मुक्त कराया गया है।
परिवार पालन के लिए मजदूरी
सूत्रों की माने तो बाल श्रम करने वाले अधिकांश बच्चे निर्धन परिवारों के होते हैं। परिवार पालन के लिए परिजन उन्हें काम करने के लिए भेज देते हैं। कार्रवाई के बाद कुछ दिन घर रहते हैं, लेकिन बाद में काम पर जाना मजबूरी हो जाता है। दुकानदार कम मजदूरी के लालच में बच्चों को काम पर रखना पसंद करते हैं।