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युवा समझें, कोरोना किसी की उम्र नहीं, बस लापरवाही देख रहा

locationचुरूPublished: Apr 04, 2020 09:33:45 pm

Submitted by:

Brijesh Singh

चार साल का बच्चा हो या 15 साल का किशोर अथवा 20 से 35-40 साल का युवा। वह इन्हें भी चपेट में ले रहा है।

युवा समझें, कोरोना किसी की उम्र नहीं, बस लापरवाही देख रहा

युवा समझें, कोरोना किसी की उम्र नहीं, बस लापरवाही देख रहा

बृजेश सिंह
चूरू. नोवल कोरोना वायरस यानी कोविड-19 को लेकर जो थ्योरी फरवरी के पहले सप्ताह में सामने आई थी, दूसरा सप्ताह आते-आते वह थ्योरी कहीं गुम होती नजर आ रही है। दरअसल, बात हो रही है इन दिनों पूरे विश्व में महामारी की तरह फैले कोविड-19 की। आपको याद हो, तो फरवरी के महीने में नोवल कोरोना वायरस के पीडि़तों के जितने भी मामले आते थे, उनमें से अधिकांश 6 0 साल या उससे अधिक की उम्र के लोगों के होते थे। लेकिन अब जबकि इस महामारी को भारत में प्रवेश किए हुए भी लगभग दो माह का समय होने को आया है, अब यह बात धीरे-धीरे साफ होती जा रही है कि कोरोना उम्र नहीं देख रहा।

चार साल का बच्चा हो या 15 साल का किशोर अथवा 20 से 35-40 साल का युवा। वह इन्हें भी चपेट में ले रहा है। धीरे-धीरे अब चिकित्सा विशेषज्ञ भी इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं। चूरू में ही एक दिन में सामने आए सात कोरोना पॉजिटिव के मामलों को देखें, तो तस्वीर का यह पहलू न सिर्फ डरा रहा है, बल्कि एक संकेत भी दे रहा है कि इस संक्रामक महामारी को लेकर किसी तरह का भ्रम न पालें, यह सभी को प्रभावित कर सकता है, यदि आप सावधान न हों।

गौरतलब है कि चूरू में गत एक अप्रेल को दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के एक सम्मेलन से हिस्सा लेकर लौटे जिन 17 लोगों का सैंपल जांचा गया, उनमें से सात लोगों की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव मिली थी। खास बात यह है कि इन सात लोगों में से महज दो लोग ऐसे थे, जिनकी उम्र साठ पार थी। एक की उम्र तो साठ साल और दूसरे की 6 5 साल थी। इसके अलावा एक की उम्र 16 साल, दूसरे की 20 साल, तीसरे की 31 और चौथे की 35 साल थी। इतना ही नहीं, पांचवा व्यक्ति भी महज 45 साल का है, जो संक्रमित निकला। कोरोना पॉजिटिव के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। अगर युवा भी लापरवाही करेगा, तो वह कोरोना की चपेट में आ जाएगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ का भी एक अध्ययन कहता है कि कोरोना की चपेट में आने वाले सिर्फ पांच फीसदी लोगों को ही अस्पताल की जरूरत पड़ती है। उनमें भी महज एक फीसदी लोग ऐसे होते हैं, जिनकी हालत इतनी खराब होती है और श्वसन संबंधी दिक्कत इतनी बढ़ जाती है कि उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। इन्हीं पांच फीसदी में से दो फीसदी ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें उनकी हालत को देखते हुए आईसीयू में रैफर करना पड़ता है। बाकी के 95 फीसदी लोग बिना दवा के भी ठीक हो जाते हैं।

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