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नव्वाणु यात्रा में हुई गिरीराज की वंदना

locationकोयंबटूरPublished: Oct 16, 2019 04:25:04 pm

Submitted by:

Dilip Dilip Sharma

सुपाश्र्वनाथ जैन आराधना भवन में नव्वाणु भाव यात्रा का समापन पारंपरिक अंदाज में किया गया। इस मौके पर लाभार्थी परिवार व तपस्वियों की ओर से वधामणी की गई। कार्यक्रम के दौरान २० फीट ऊंचा गिरीराज पर्वत की आकृति बनाई गई।

नव्वाणु यात्रा में हुई गिरीराज की वंदना

नव्वाणु यात्रा में हुई गिरीराज की वंदना

कोयम्बत्तूर. सुपाश्र्वनाथ जैन आराधना भवन में नव्वाणु भाव यात्रा का समापन पारंपरिक अंदाज में किया गया। इस मौके पर लाभार्थी परिवार व तपस्वियों की ओर से वधामणी की गई। कार्यक्रम के दौरान 20 फीट ऊंचा गिरीराज पर्वत की आकृति बनाई गई। आयोजन में प्रतिदिन एकासने व आयंबिल के जरिए गिरीराज वंदना की गई। कार्यक्रम में चातुर्मास कर रहे जैन मुनि हितेशचंद्र विजय ने भाव यात्रा का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि भगवान आदिनाथ से लेकर महावीर तक 23 तीर्थंकर ने जिस भूमि को स्पर्श किया वहां करोड़ों मुनियों ने जीवन की अंतिम आराधना करने के बाद मोक्ष प्राप्त किया। शास्त्रों में भी उल्लेख है कि पांडव, नारद, श्रीराम आदि कई पुण्य आत्माओं की आराधना भूमि रही।
मुनि नेे कहा कि इन सभी पुण्य आत्माओं ने भाव नव्वाणु यात्रा कर पुण्य का जो सृजन किया है उसे सदा बनाए रखना भाग्य की बात है। इस यात्रा को लेकर करोड़ों मुनियों के साथ पुण्य आत्माओं की तपोभूमि के दर्शन का लाभ लिया। उन्होंने कहा कि जीवन में दो यात्राएं होती हैं एक जीवन यात्रा व दूसरी मरण यात्रा। दोनों यात्राओं के बीच हमारा जीवन है। इनमें से एक को भी साध लिया तो जीवन सफल हो जाएगा। जन्म के बाद समय समय पर समझ कर आत्म चिंतन किया तो जीवन और मृत्यु सुधर जाएगी। यदि माया कपट के भय में बह गए तो दोनों यात्राएं बिगड़ जाएगी। पाप करने वाले पापी को भी अंत में सुधरते हुए देखा है। भाव यात्रा से जीवन को सतत सुधारने का प्रयास करेें। ताकि जीवन यात्रा सफल हो सके। ओली आराधना के साथ नव्वाणु यात्रा करने वाले तपस्वियों का बहुमान संघ की ओर से किया गया।

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