इसके बावजूद तमिलनाडु ही नहीं, दूसरे दक्षिणी राज्यों में भी हिंदी सीखने, पढऩे और बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है। तमिलनाडु के छोटे शहरों में भी थोड़ी-बहुत हिंदी बोलने वाले मिल जाएंगे। पलायन भी इसका एक बड़ा कारण है। काफी संख्या में प्रवासी मजदूरों का तमिलनाडु में काम की तलाश में आना भी है। साथ ही संवाद और संपर्क की भाषा के तौर पर हिंदी की अहमियत का बढऩा भी नई पीढ़ी के बच्चों के लिए हिंदी पढऩे-लिखने के लिए प्रेरक का काम कर रहा है। कॅरियर के बदलते परिदृश्य को देखते अभिभावक भी अपने बच्चों को हिंदी सिखाने के इच्छुक हैं। यही कारण है कि हिंदी सिखाने वाले दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा जैसी संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही हैं। हालांकि, राज्य में द्वि-भाषा सूत्र लागू होन के कारण सरकारी स्कूलों में हिंदी नहीं पढ़ाई जाती लेकिन इन स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे भी काफी संख्या में हिंदी पढ़ रहे हैं। CBSE केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्ध (सीबीएसई) स्कूलों में हिंदी एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाती है। इनमें कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जिनका संचालन राजनीतिक तौर पर हिंदी का विरोध करने वाले लोग कर रहे हैं। हिंदी का विरोध करने वाले लोगों के बच्चे भी हिंदी पढ़ और सीख रहे हैं। यह बदलाव है लेकिन अभी राजभाषा हिंदी के देश के सभी हिस्सों में आमजन की भाषा बनने के लिए काफी लंबा सफर तय करना है।
दक्षिणी भारतीय आम लोगों की हिंदी को लेकर एक शिकायत रहती है। ऐसे अधिकांश लोगों का कहना है कि वे न तो हिंदी का विरोध करते हैं और ना ही उन्हें हिंदी से कोई द्वेष है। वे कहते हैं कि हम सिर्फ हिंदी थोपे जाने का विरोध करते हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि सरकार को हिंदी थोपने की कोशिश करने के बजाय लोगों को उसे मातृभाषा के साथ स्वेच्छा से अपनाने को बढ़ावा देना चाहिए। इन लोगों का कहना है कि हिंदी भाषियों को अपनी सोच बदलनी चाहिए। उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि दक्षिण भारतीय राज्यों या दूसरे अहिंदी भाषी राज्यों के लोग सिर्फ संपर्क भाषा होने के कारण हिंदी को सीखें। ऐसे लोगों को कहना है कि भाषा मैत्री के परस्पर भाव से ही हिंदी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। दक्षिणी में हिंदी को बढ़ावा देने के साथ ही उत्तरी राज्यों में दक्षिणी भाषाओं को सीखने के प्रति लोगों को प्रेरित किया जाना चाहिए। इससे दोनों क्षेत्रों के लोग एक-दूसरे की संस्कृति, भाषा और परंपराओं को अच्छे से जान सकेंगे। कुछ लोगों का कहना था कि केरल इस मामले में एक आदर्श उदाहरण हो सकता है जहां दसवीं में विद्यार्थियों के पास वैकल्पिक भाषा के तौर पर अध्ययन के लिए हिंदी सहित 13-14 भाषाओं का विकल्प है।