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सुख का मार्ग बताने वाले गुरू सबसे बड़े उपकारी

locationकोयंबटूरPublished: Jul 14, 2019 12:21:44 pm

आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाने, भूखे को भोजन कराने व वस्त्र रहित को वस्त्र देने से उपकार होता है लेकिन यह अल्प अस्थायी होने से छोटे उपकार हैं।

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सुख का मार्ग बताने वाले गुरू सबसे बड़े उपकारी

कोयम्बत्तूर. आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाने, भूखे को भोजन कराने व वस्त्र रहित को वस्त्र देने से उपकार होता है लेकिन यह अल्प अस्थायी होने से छोटे उपकार हैं। सबसे बड़े उपकारी अरिहंत परमात्मा हैं, जो हमें समस्याओं से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की ओर ले जाता है।
आचार्य ने शनिवार को Coimbatore आर.एस. पुरम स्थित राजस्थानी संघ भवन Rajasthani sangh bhavan में बहुफणा पाश्र्वनाथ जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में चातुर्मास कार्यक्रम के तहत आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि के वल्य ज्ञान होने के बाद बाद जगत में साक्षात जाकर प्रतिदिन दोपहर तक धर्मदेशना के माध्यम से जीवों को धर्म बोध देते हैं। जैसे बगीचे के विभिन्न फूलों को गूंथकर माला बनता है वैसे ही गणधर भगवंत धर्मदेशना के पदार्थ को आगम सूत्र के रूप में गूंथते हैं। आगम सूत्रों को स्पष्ट करने के लिए अनेक आचार्य भगवंतों ने साहित्य की रचना की।
आचार्य ने कहा कि जिस प्रकार गंगा का आगम स्थान पर प्रवाह विशाल होता है लेकिन आगे चलकर छोटा हो जाता है, उसी प्रकार परमात्मा की ओर से बहने वाली श्रुतज्ञान की गंगा समय के साथ क्षीण होती गई। लेकिन, लोग जिस प्रकार गंगा को शुद्ध मानते हैं और एक पात्र मेंं लिया जल भी उतना ही शुद्ध है, उसी प्रकार जितना भी श्रुतज्ञान हमें मिलता है वह उतना ही उपयोगी है। जिस प्रकार परमात्मा की प्रतिमा हमारे लिए पूजनीय है उसी प्रकार उनके बताए आगम ग्रंथ भी हमारे लिए पूजनीय हैं।
आचार्य ने कहा कि मोह माया से भरे इस विषम काल में आत्मा के उद्धार के लिए जिनेश्वर परमात्मा की प्रतिमा और आगम गं्रथ आधारभूत है। ग्रंथों पर प्रवचन देने वाले गुरू भी हमारे लिए उपकारी हैं। उन्होंने कहा कि आंख खुलते ही हमें माता पिता के चरण स्पर्श करने चाहिए तथा देव गुरुओं के दर्शन के लिए प्रात: मंदिर और उपाश्रय मेंं जाना चाहिए।
रविवार से 45 आगम तप के एकासने शुरू होंगे। श्रावक जीवन के अलंकार स्वरूप बारह व्रत स्वीकार कराए जाएंगे। सोमवार से चातुर्मास प्रारंभ होंगे। इसी के साथ वीश स्थानक तप, सम्मेदशिखर तप, 20 विहरमान तप शुरू होंगे। 22 जुलाई से महामंगलकारी सिद्धि तप शुरू होगा। प्रतिदिन सुबह ९ बजे प्रवचन होंगे।
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