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हृदय रूपी कमल में करें नवपदों का ध्यान

locationकोयंबटूरPublished: Oct 06, 2019 12:11:50 pm

Submitted by:

Dilip

जैन आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि कमल की विशेषता है कीचड़ में उगना और पानी में बढऩा है फिर भी उनसे अलिप्त रह कर अपनी सुंदरता को बरकरार रखना है। इसी प्रकार अपने हृदय को संसार से अलिप्त रख कर हृदय रूपी कमल में अरिहंत आदि नवपदों का ध्यान करना चाहिए।

कोयम्बत्तूर. जैन आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि कमल की विशेषता है कीचड़ में उगना और पानी में बढऩा है फिर भी उनसे अलिप्त रह कर अपनी सुंदरता को बरकरार रखना है। इसी प्रकार अपने हृदय को संसार से अलिप्त रख कर हृदय रूपी कमल में अरिहंत आदि नवपदों का ध्यान करना चाहिए।
वे राजस्थानी संघ भवन में बहुफणा पाश्र्वनाथ जैन ट्रस्ट के तत्वावधान मेंं चातुर्मास कार्यक्रम के तहत आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जगत में सुख का आधार पुण्य है। पुण्य का आधार धर्म है और धर्म का आधार अरिहंत परमात्मा हैं।
उन्होंने कहा कि पूर्व भव में २० स्थानक की आराधना सभी जीवों को शाश्वत सुखी करने की शुभ भावना अरिहंत बनने का बीज है। इसमें विशिष्ट आराधना जुड़ती है तो अरिहंतों की आत्मा तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करती है।
तीर्र्थंकर नाम कर्म के उदय से स्व पर का अवश्य ही हित होता है। अरिहंतों के जीवन में ३४ प्रकार के विशिष्ट अतिशय होते हैं। धर्म देशना के जरिए विशेष कर मनुष्यों को उद्देश्य में रखकर धर्म देशना देते हैं। उन्होंने कहा कि संसार में कुछ भी पाने के लिए दाम चुकाना पड़ता है। मनुष्य जन्म की प्राप्ति मुफ्त में नहीं हुई है। पूर्व जन्मों के पुण्य से ही मनुष्य जन्म आर्य देश में मिला है। धर्म करने के लिए सामग्री भी पुण्य से ही मिलती है। इतना होने के बावजूद वह पांच इंद्रियों के भोग और प्रमाद वश धर्म का आचरण नहीं करता।
उन्होंने कहा कि विज्ञान के साधनों ने जीवन को आसान बनाया लेकिन वैज्ञानिक साधनों टीवी, मोबाइल आदि के कारण धर्म आराधना से दूर होकर अन्य विषयों पर ध्यान लगाते हैं। मानव जीवन पाकर व्यक्ति जीवन, सत्ता, धन शक्ति व वैभव पूरा करने में जीवन गंवा देता है। आयु पूर्ण होने पर सभी से संबंध खत्म हो जाता है। मनुष्य जीवन को सार्थक करने के लिए वीतराग परमात्मा ने नव पदों की आराधना कराई है। आराधना, साधना व उपासना कर जीवात्मा अरिहंत पदों को प्राप्त कर शाश्वत सुख को प्राप्त करती है।
प्रवचन के बाद हेम भूषण सूरि का स्मृति ग्रंथ हेम जीवन पुस्तक का विमोचन किया गया। आसोज माह की ओली के मंगल प्रारंभ के साथ नौ दिवसीय नवाह्निका महोत्सव शुरू हुआ।
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