scriptआत्मा का गुण है ज्ञान | jain acharya ratnasen pravachan | Patrika News

आत्मा का गुण है ज्ञान

locationकोयंबटूरPublished: Oct 12, 2019 01:15:02 pm

Submitted by:

Dilip

आचार्य विजय रत्नसेन सूरिश्वर ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति ज्ञानी बनना चाहता है। किसी को अज्ञानी रहना पसंद नहीं। बालक को जन्म के दो तीन वर्ष बाद ही स्कूल भेजकर ज्ञानार्जन शुरू करवा देते हैं। १५-२० वर्ष में वह विद्वान कहलाने लगता है।

आत्मा का गुण है ज्ञान

आत्मा का गुण है ज्ञान

कोयम्बत्तूर. आचार्य विजय रत्नसेन सूरिश्वर ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति ज्ञानी बनना चाहता है। किसी को अज्ञानी रहना पसंद नहीं। बालक को जन्म के दो तीन वर्ष बाद ही स्कूल भेजकर ज्ञानार्जन शुरू करवा देते हैं। १५-२० वर्ष में वह विद्वान कहलाने लगता है।
वे यहां राजस्थानी संघ भवन में बहुफणा पाश्र्वनाथ जैन ट्रस्ट की ओर से चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम के तहत धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शिक्षण प्राप्त कर व्यक्ति विद्वान बन सकता है लेकिन उसका लक्ष्य केवल धनार्जन रहता है। इससे आत्मिक नुकसान होता है। इस दृष्टिकोण से वह अज्ञानी ही कहलाता है। उन्होंने कहा कि जो आत्मा को संयमित कर आत्मिक विकास की ओर ले जाए वही सच्चा ज्ञान है। संसार में कैसा व्यवहार करना है यह सिर्फ आत्मीय ज्ञान ही बताता है। उन्होंने कहा कि विज्ञान ने शोध के आधार पर जीव वनस्पति में अनेक खोजें की हैं, लेकिन वह सिर्फ उपलब्धि ही कहलाई। जीव रक्षा के बारे में कोई लक्ष्य नहीं हैं। धर्म हमें जीवन से होने वाले नुकसान और हिंसा के कारण आत्मिक नुकसान से बचने का उपाय बताते हैं। आज दुनियावी नहीं आत्मिक ज्ञान की आवश्यकता है। ज्ञान आत्मा का गुण है। आत्मा के भीतर अनंत ज्ञान है, लेकिन ज्ञान आवरणीय कर्मों के बंधन मेंं बंधी आत्मा चार गतियों में अज्ञानी बनी रहती है। वीतराग परमात्मा की ओर से बताए तत्व ज्ञान, श्रद्धा, तर्क कुतर्क करके वचनों को मिथ्या सिद्ध करने का ज्ञान अशांति पैदा करता है। जिन्होंने तत्व ज्ञान को जाना है ऐसे ज्ञानी शिक्षक के साथ हंसी मजाक अपमान है, यह ज्ञानी गुरु को कष्ट पहुंचता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में शिक्षण संस्थाओं में अर्थाजन के लिए ज्ञान दिया जा रहा है जिससे मनुष्य स्वार्थी बन जाता है, जबकि धर्म का ज्ञान परमार्थी बनाता है।
उन्होंने कहा कि सभी जीवोंं को सुख पसंद है। दूसरे को सुख पहुंचाने का भाव ज्ञान से ही प्राप्त होता है। ज्ञान जीवात्मा के सम्यग दर्शन व चारित्र प्राप्ति का साधन है। अज्ञानी को विशुद्ध आचरण से भी श्रद्धा नहीं हो सकती। शनिवार को अशोक गेमावत भक्ति संगीत प्रस्तुत करेंगे।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो