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आत्मा से शल्य को बाहर निकालना जरूरी

locationकोयंबटूरPublished: Oct 21, 2019 12:05:19 pm

Submitted by:

Dilip

जैन आचार्य विजयरत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि माया अर्थात छल कपट। बाहर कुछ व मन में कुछ। इसे मायावी कहते हैं। हाथी के दांत दिखाने के और और खाने के और होते हैं। इसी प्रकार मायावी व्यक्ति का बाह्य आचरण कुछ और होता है अंदर से कुछ और होता है।

आत्मा से शल्य को बाहर निकालना जरूरी

आत्मा से शल्य को बाहर निकालना जरूरी

कोयम्बत्तूर. जैन आचार्य विजयरत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि माया अर्थात छल कपट। बाहर कुछ व मन में कुछ। इसे मायावी कहते हैं। हाथी के दांत दिखाने के और और खाने के और होते हैं। इसी प्रकार मायावी व्यक्ति का बाह्य आचरण कुछ और होता है अंदर से कुछ और होता है। वह बहुफणा पाश्र्वनाथ जैन ट्रस्ट की ओर से आयोजित चातुर्मास कार्यक्रम के तहत धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पैर में कांटा लग जाता है तो उसे निकालने का प्रयास किया जाता है। बाहर नहीं निकाला जाए तो वह तकलीफ होती रहती है। जीवन में पाप हो जाने के बाद उस पाप को छिपाना आत्मा का शल्य है। आत्मा से इस प्रकार के शल्य को बाहर निकालना जरूरी है। समय रहते उसे बाहर नहीं निकाला जाए तो भविष्य में आत्मा की स्थिति भयंकर हो सकती है। साधक आत्मा को शल्य युक्त होकर एक क्षण भी नहीं रहना चाहिए। देह के शल्य से भी आत्मा का यह शल्य अत्यंत ही खतरनाक है। देह का शल्य अल्प समय के लिए नुकसान करता है। जबकि आत्मा का शल्य अनेक भवों तक आत्मा को परेशान करता है। लक्ष्मणा साध्वी के प्रसंगों को जानने के बाद तो अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए एक क्षण भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। रोग को छिपाने से रोग घटता नहीं है बल्कि बढ़ता ही जाता है। इस प्रकार शल्य पूर्वक धर्म – आराधना करने से आत्मा का रोग नहीं मिटता बल्कि बढ़ता जाता है। पाप की आलोचना करने से लाभ होता है। जिन आत्माओं ने पाप को छिपाने की कोशिश की उन आत्माओं का पाप को छिपाने की कोशिश की उनका संसार बढ़ा है। जिन्होंने शल्य रहित होकर पापों का प्रायश्चित किया वहआत्माएं अल्प काल में ही मोह माया के बंधन से सर्वथा मुक्त बनी है। साधक का कर्तव्य है कि वह भूल कर भी आत्मा में शल्य को स्थान न दे। आचार्य ने कहा कि जो आत्मा सरल है अर्थात उसमें छल कपट नहीं है उन आत्माओं की शुद्धि व कल्याण होता है। जो मायावी व कपटी हैं उनका कल्याण संभव नहीं है। मायावी व्यक्ति का जीवन मुंह में राम बगल में छुरी का होता है। जिस प्रकार धागे में गांठे आने पर मशीन आवाज करती है उसी प्रकार ह्रदय में माया आने पर विकास की गति रुक जाती है।
हर्ष विजय की गुणानुवाद सभा आज
आचार्य के सानिध्य में सोमवार को संत हर्ष विजय की ४०वीं पुण्यतिथि पर गुणानुवाद सभा होगी। २६ व २७ अक्टूबर को भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक के उपलक्ष्य में कार्यक्रम होगा।
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