जीवन की साधना का फल समाधि मरण
कोयंबटूरPublished: May 18, 2019 12:11:48 pm
आचार्य रत्नसेन सूरीश्वर के सानिध्य में यहां जैन भवन में शुक्रवार को संत भद्रकंर विजय की गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया।
Man has received the birth of great virtue
ईरोड. आचार्य रत्नसेन सूरीश्वर के सानिध्य में यहां जैन भवन में शुक्रवार को संत भद्रकंर विजय की गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। नवकार मंत्र के साधक भद्रकंर विजय के ३८ वें स्वर्गारोहण तिथि क पर आयोजित तीन दिवसीय भक्ति महोत्सव के तहत आज कई कार्यक्रम हुए।
मुनि प्रशांत रत्न विजय व शालिभद्र विजय ने आचार्य भद्रकंर के कृतित्व व अनेक प्रसंगों पर गुणानुवाद किया। मुनि स्थूलभद्र विजय ने समाधि भाव पर गुणानुवाद किया।
आचार्य के सांसारिक परिजन दिनेश जैन, भावेश चौपड़ा, प्रकाश व मनोहरलाल ने आचार्य की हिंदी में अनुवादित पुस्तक मंत्राधिराज प्रवचन सार का विमोचन किया। लाभार्थी संतोष मेहता परिवार का अभिनंदन किया गया। महिला मंडल व मुमुक्षु रक्षिता ने भक्ति गीत गायन किया।
संघ के पदाधिकारियों रमेश बाफणा, राकेश राठौड़, बेंगलूरु के प्रकाश व मनोहर लाल ने गुणानुवाद व मंगलाचरण के बाद संत भद्रकंकर के चित्र पर माल्यार्पण किया। बालक ऋषभ चंडालिया ने गुरू के जीवन प्रसंग पर प्रकाश डाला। मुंबई के चेतन मेहता ने कार्यक्रम का संचालन किया।
गुणानुवाद सभा को संबोधित करते हुए आचार्य रत्नसेन सूरीश्वर ने भ्रदकंर के व्यक्तित्व व कृत्रित्व की सराहना की। रत्नसेन ने कहा कि जीवन में साधना का फल समाधि मरण है। साधु जीवन की सभी साधनाएं समाधि मरण पाने के लिए है।
उन्होंने कहा कि उनके दादा प्रेम सूरीश्वर व गुरू रामचंद्र ने संत भद्रंकर को आचार्य पद पर सुशोभित करने के खूब प्रयास किए। फिर भी उनकी नि:स्पृहता से उन्होंने आचार्य पद स्वीकार नहीं किया। इसी कारण अनेक भगवंत व आचार्य उन्हें पूजते थे। इनके आदर्शों को मानते हुए अनेक संतों ने आचार्य पदवी नहीं ली।
अनेक तपस्वियों ने उनके सानिध्य में आत्म साधना का मार्ग अपनाया। भद्रकंर ने राजस्थान में अनेक तीर्थों पर आत्म साधना की। फलस्वरूप नवकार महामंत्र पर अनेक अनुप्रेक्षाएं की थीं। जीवन में सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव साधकर उन्होंने अंत समय पर समाधि मरण प्राप्त किया था। शनिवार को सुबह नौ बजे प्रवचन होंगे।