आत्म दर्शन की रुचि सतत जरूरी
कोयंबटूरPublished: Oct 09, 2019 02:44:45 pm
सिद्धचक्र की आराधना कर्म बंधनों से मुक्त होने का अचूक उपाय है। कर्मों के बंधन से वही मुक्त हो सकता है जिसमें आत्मदर्शन की अभिरुचि सतत रूप से मन में आराधना के लिए दृढ़ निश्चय हो।
आत्म दर्शन की रुचि सतत जरूरी
कोयम्बत्तूर. सिद्धचक्र की आराधना कर्म बंधनों से मुक्त होने का अचूक उपाय है। कर्मों के बंधन से वही मुक्त हो सकता है जिसमें आत्मदर्शन की अभिरुचि सतत रूप से मन में आराधना के लिए दृढ़ निश्चय हो। आत्म शक्ति से अशुभ कर्मों से छुटकारा पाया जा सकता है।
यह बात जैन मुनि हितेशचंद्र विजय ने ओली आराधना के चतुर्थ दिन आरजी स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में चल रहे चातुर्मास के तहत धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि मनुष्य अपनी विशुद्ध आत्मा को समझे व दिव्य आत्मबल का सदुपयोग शुरू कर दे। उन्होंने कहा कि आत्मदर्शन आत्मा के स्वतंत्र अस्तित्व का बोध उतना ही जरूरी है जितना रात्रि के बाद सूर्योदय होना है।
हमारे मन में मिथ्या, अज्ञान, ममत्व, मोह को दूर कर नए विचार सद्भावना सन्मार्ग को जाग्रत कर मोक्ष रूपी सुख देते हैं। धर्म से सुख प्राप्त होता है, जबकि कर्म देता है, लेता भी है भाग्य का निर्माता बन सकता है तो दर दर की ठोकरें दिला सकता है। उन्होंने कहा कि कर्म सोच समझ के हों इनकी सबसे बड़ी मार होती है। इससे पूर्व नव्वाणु भाव यात्रा में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।