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साधना के लिए दृढ़ता व धैर्य की जरूरत

locationकोयंबटूरPublished: Oct 19, 2019 01:11:09 pm

Submitted by:

Dilip Dilip Sharma

साधना के मार्ग पर चलने वाले साधक को अत्यंत दृढ़ व धीरज रखने की आवश्यकता होती है। बाहरी विजयों की सफलताओं की अपेक्षा अंदर की सफलताओं को पाने में अधिक संकट का सामना करना पड़ता है। साधना के इन विघ्नों के समय जो डगमगा जाते हैं वह साधना से दूर हो जाते हंैं।

साधना के लिए दृढ़ता व धैर्य की जरूरत

साधना के लिए दृढ़ता व धैर्य की जरूरत

कोयम्बत्तूर. साधना के मार्ग पर चलने वाले साधक को अत्यंत दृढ़ व धीरज रखने की आवश्यकता होती है। बाहरी विजयों की सफलताओं की अपेक्षा अंदर की सफलताओं को पाने में अधिक संकट का सामना करना पड़ता है। साधना के इन विघ्नों के समय जो डगमगा जाते हैं वह साधना से दूर हो जाते हंैं।
यह विचार सुपाश्र्वनाथ आराधना भवन में जैन मुनि हितेशचंद्र विजय ने व्यक्त किए। वह यहां चातुर्मास कार्यक्रम के तहत आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि साधना मार्ग पर जाने वाले साधक को सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जल्दबाजी या उतावला नहीं होना चाहिए। धैर्य व उत्साह के साथ अपने प्रयास को धीरे धीरे करना चाहिए। आज के लौकिक व्यवहार का कोई भी क्षण मानव परीक्षा का क्षण हो सकता है। जितना अधिक प्रगति करेगा उतना ही उसका जीवन विपत्तियो में घिरता जाएगा। आज के वैज्ञानि युग में मनुष्य जितना अधिक सुविधा भोगी हो गया है और उसने अपने आसपास ऐसी स्थितियां पैदा कर ली हैं जिससे जरा सी भी परेशानी से किसी भी क्षण वह घातक परिस्थितियों में आ सकता है। एक क्षण की लापरवाही पूरे परिवार के लिए दुख का कारण बन सकती है। आज के भौतिक व टीवी के युग में धन्य है वह मुमुक्षु आत्मा जो संसार का समस्त वैभव त्याग कर सयंम की राह के राही बन रहे हैं। जो उम्र भोगने की है उस उम्र में वह वैराग्य धारण कर रहे हैं और अपने जीवन को भगवान महावीर के बताए मार्ग पर प्रशस्त हो रहे हैं। इस मौके पर राजस्थान मूर्ति पूजक संघ व गोड़वाड़ हवेली जैन संघ की ओर से मुमुक्षु का बहुमान किया गया।

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