सेलम. पशु को किसी बंधन में बांधना, किसी पर अधिक प्रहार करना, शक्ति से अधिक वजन लादना, खाने पीने पर प्रतिबंध लगाना पाप कर्म के बंधन बांधना है।
ये बातें वीरेन्द्र मुनि ने वह सेलम स्थित महावीर भवन salem में धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि प्रत्येक को सुख चाहिए तो इन जीवों को भी सुख देना चाहिए। १२ घड़ी तक बैल भूखे प्यासे रहे तो पहले तीर्थंकर ऋषभ देव भगवान के अंतराय बंध गई जिससे १३ माह व १० दिन तक आहार पानी नहीं मिला। श्रीकृष्ण वासुदेव के पुत्र ढंढण मुनि ने भगवान अरिष्ठनेमि से दीक्षा ली परंतु पूर्व भव में अंतराय कर्म बांध कर आए थे जिससे उन्हें आहार व पानी नहीं मिलता था। भगवान से उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि जिस दिन उन्हें अपनी लब्धि से आहार मिलेगा तब आहार करेंगे। एक दिन आहार लेने के लिए द्वारिका आए थे उस समय वासुदेव की सवारी आ रही थी। कृष्ण ने जैसे ही मुनि को देखा तो हाथी से उतर गए और विधिपूर्वक वंदना की। यह देखकर उन्होंने मुनि को घर आने का आमंत्रण दिया। मुनि ने उनके हाथ से आहार लिया और चले गए। मुनि ने प्रवचन के दौरान व्रत की महिमा को विस्तार से समझाया।