मानव मात्र की दृष्टि में भेद आ सकता है पर महापुरुषों की दृष्टि में कोई भेद नहीं होता। tamilnadu
मदुरै. मानव मात्र की दृष्टि में भेद आ सकता है पर महापुरुषों की दृष्टि में कोई भेद नहीं होता। वह समदृष्टि से देखने वाले राग-द्वेश से परे रहने वाले युग दृष्टा है। हमारी वाणी में दृष्टि में राग-द्वेश ईष्या। ऊंच-नीच सब आ सकता है। पर महापुरुषों की वाणाी एवं दृष्टि में तो सिर्फ मरमार्थ और निस्वार्थ भाव ही झलकता है। भक्त उनके स्वार्थ के अभिभूत हो भगवान बदल सकता है, पर भगवान अपने भक्त से कभी दूर नहीं होता है। यह विचार साचा सुमति नाथ राजेंद्र्र जैन संघ में आयोजित प्रवचन सभा में मुनि हितेशचंद्र विजय ने धर्म सभा में कहे। मुनि ने कहा कि जिनके जीवन में संयम है, दृष्टि में समभाव है। वही व्यक्ति अपना जीवन उन्नती की ओर ले जा सकता है। आज के इस दौर में हर व्यक्ति दुखी है मानसिक रोग से पीडि़त है। इसका मूल कारण है अन्य के प्रति संभाव नहीं है। मन की मनोवृति में सहनशीलता का अभाव होने से कई तरह की ठोकर खा रहा है। सभलने का मौका है फिर भी ईष्या के कारण स्वंय का पतन करता जा रहा है। वक्त है जाग्रत होने का संभलने का।