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स्मार्ट सिटी में गहराने लगा पेयजल संकट

locationकोयंबटूरPublished: May 21, 2019 12:41:34 pm

शहर के लोगों को इन दिनों पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। भीषण गर्मी के दौरान जब पानी की खपत और मांग अधिक हैं,लेकिन प्रशासन पर्याप्त जलापूर्तिनहीं कर पा रहा।

water problem

स्मार्ट सिटी में गहराने लगा पेयजल संकट

कोयम्बत्तूर. शहर के लोगों को इन दिनों पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। भीषण गर्मी के दौरान जब पानी की खपत और मांग अधिक हैं,लेकिन प्रशासन पर्याप्त जलापूर्तिनहीं कर पा रहा। समय रहते जलदाय विभाग ने इससे निपटने की योजना नहीं बनाई। इसका खमियाजा जनता भुगत रही हैं। हालात यह है कि शहर के कई इलाकों में सप्ताह में एक बार तो कई इलाकों में १० से १२ दिन बाद पीने का पानी मिल रहा है। हांलाकि कोयम्बत्तूर में बरसात कम होने से हर साल पेयजल किल्लत हो जाती है, इसके बाद भी पानी की व्यवस्था केरल में होने वाली बारिश से हो पाती है। वहां होने वाली बारिश का पानी कोयम्त्तूर जिले के बांधों में आता है। शहर के लिएपानी की आपूर्ति सिरुवानी और पिल्लूर बांध से होती है। ये भी मानसून से पहले ही सूखने लगते हैं।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से उम्मीद
इस बीच स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत शहर में २४ घंटे जलापूर्ति के लिए कई इलाकों में पाइप लाइन डलने से लोगों को उम्मीद बंधी है पर अंदेशा भी है कि आखिर २४ घंटे पानी की व्यवस्था कैसे संभव होगी।
यह योजना जनता के गले नहीं उतर रही । खुद जलदाय विभाग का मानना है कि शहर के पुराने इलाके में तो पानी की आपूर्ति चार दशक पुरानी पाइप लाइनों के जरिए हो रही है।कई जगह अंग्रेजों के जमाने की व्यवस्था अभी तक चल रही है। यह सब बदला जाएगा, लेकिन अल्पवृष्टि वाले कोयम्बत्तूर में पानी आएगा कहां से ।फिलहाल सिरुवानी और पिल्लूर बांध से पानी मिलता है। जो पूरे साल के लिए भी पर्याप्त नहीं रहता और यदि मानसून दगा दे जाए तो संकट आ जाता है।
शहर के मध्यमर्गीय व सम्पन्न लोग पहले ही पानी के मामले में प्रशासन के भरोसे नहीं हैं।अधिकांश कॉलोनियों में लोगों ने घरों में बोर वैल बनवा रखे हैं। पर कई इलाकों में होर वैल का पानी पीने लायक नहीं है। इसलिए जब भी नल आता है,पीने के लिए पानी भर लेते हैं। बाकी नहाने ,कपड़े -धोने व अन्य जरुरतों के लिए बोरवैल है। लेकिन अब भूमिगत जल स्तर भी घटता जा रहा है ।शहर के प्राय: सभी इलाकों में बोर वैल हांफने लगे हैं। इसका कारण पानी का अति दोहन तो है ही। भू जल पुनर्भरण की ओर न जनता का ध्यान है न प्रशासन का।
जहां पानी पाताल में चला गया है । वहां से उसे खींचने के लिए फिर से बोरवैल को गहरा कराया जा रहा है। मशीनों की सहायता से भरी दोपहरी में इस काम को अंजाम दिया जा रहा है। साथ ही कई लोग नए बोर वैल बनवा रहा हैं। चूंकि गर्मी के मौसम में पानी धरती के तले में होता है। बाद की ऋ तुओं में जलस्तर बढ़ जाता है।
इनका किया जा सकता है बेहतर उपयोग

दो दशक पहले जलदाय विभाग ने शहर के कई इलाकों में पेयजल संकट से निपटने के लिए एक बेहतर योजना बनाई थी। इसके तहत सैकड़ों स्थानों पर बोरवैल बनवाए गए। मजबूत चबूतरा बनवा कर बड़ी काली टंकियां रखवाई गई। इन्हें बोरवैल से जोड़ दिया गया। थपक्कल मैदान सहित कई इलाकों में करीब १५ मीटर ऊंचा लोहे का स्ट्रक्चर बनवा कर टंकी रखवाई। इनसे इलाके के रहवासियों को बड़ी राहत मिली थी। राहगीरों को सदैव पानी मिल जाता था। आज भी ये बेहतर हालत में हैं पर इनका उपोयग नहीं हो रहा। बाद के अधिकारियों ने इनकी ओर ध्यान नहीं दिया। बोर वैल बेकार हो गए। अब ये सूखी टंकियां जनता को ंंमुंह चिढ़ाती नजर आ रही हैं।
प्राचीन जल स्रोतों की लेनी होगी सुध
आजादी से पहले तक कोयम्बत्तूर पानी के मामले में आत्मनिर्भर था। शहर के चारों ओर बड़ी झीलें और तालाब थे। शहर में बड़े मंदिरों के साथ जुड़े जलाशयों में पानी साल भर हिलोरे मारता था। लेकिन इन पर कब्जे हो गए। बरसात के पानी आने के रास्तों को जाम कर दिया गया । आज भी शहर के चारों ओर जलाशय मौजूद हैं पर इनके जलग्रहण क्षेत्रों में आबादी बस गई हैं। अब शहर का गंदा पानी इनमें जमा होता है। शहर के पास पेरुर में नदी की को भी गंदा नाला बना दिया गया है। तीन साल पहले समाजसुधारक अन्ना हजारे के सानिध्य में नदी को साफ करने की शुरुआत की गई । ये भी सिरे नहीं चढ़ी।
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