scriptपारदर्शी व जवाबदेह बने बीसीसीआई : सुप्रीम कोर्ट | BCCI should become transparent and accountable : Supreme Court | Patrika News

पारदर्शी व जवाबदेह बने बीसीसीआई : सुप्रीम कोर्ट

Published: Apr 12, 2016 12:17:00 am

प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहीम
कलीफुल्ला की खंडपीठ ने बीसीसीआई से कहा, आप कोई निजी संस्था नहीं हैं

supreme court order to Restitution 12 employees

supreme court order to Restitution 12 employees

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) से सोमवार को कहा कि बोर्ड निजी संस्था नहीं है और एक मशहूर खेल की ट्रस्टी होने के नाते उसे अपना काम पारदर्शी तरीके से करना चाहिए। साथ ही अन्य सार्वजनिक निकायों की तरह उत्तरदायी होना चाहिए।

शीर्ष अदालत के प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहीम कलीफुल्ला की खंडपीठ ने बीसीसीआई से कहा, आप कोई निजी संस्था नहीं हैं। आप उत्तरदायी और जवाबदेह हैं। आपसे उम्मीद की जाती है कि आप
सार्वजनिक निकायों की तरह काम करें। आप खेल के ट्रस्टी हैं। आपकी सभी गतिविधियों से विश्वास पैदा होना चाहिए।

कोर्ट ने कहा, आप इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं कि हम बोर्ड में किसी भी तरह का बदलाव नहीं होने देंगे जब तक सभी लोग (बीसीसीआई के सभी संबद्ध पक्ष) साथ नहीं आ जाते और बदलाव के लिए तैयार नहीं हो जाते। कोर्ट ने बोर्ड से पूछा, आप बोर्ड के काम में पारदर्शिता, जवाबदेही, निष्पक्षता लाने जैसे प्रशंसनीय लक्ष्यों का विरोध कैसे कर सकते हैं?

कोर्ट ने यह बात बीसीसीआई के संस्थापक सदस्यों में से एक क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) द्वारा न्यायमूर्ति लोढ़ा समिति की रिपोर्ट में ‘एक राज्य एक वोटÓ की सिफारिश का विरोध करने के कारण कही। बीसीसीआई और उसके सहयोगी संघ लोढ़ा समिति की एक राज्य एक वोट, बोर्ड में सीएजी का प्रतिनिधित्व, अधिकारियों का कार्यकाल दो बार तक सीमित करने और अधिकारियों की आयु सीमा 65 साल तय करने की सिफारिशों के खिलाफ हैं। इसी पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

सीसीआई की तरफ से दलील दे रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि लोढ़ा समिति की सिफारिशें विवेकपूर्ण हैं लेकिन और कुछ बातें और भी बुद्धिमत्तापूर्ण हैं। कोर्ट ने इस पर कहा, अगर बीसीसीआई के कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए कुछ अयोग्य मतदान अधिकार छीन लिए जाते हैं तो इससे किसी भी अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा।

दीवान ने अपनी दलील रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (सी), जो कि संघ बनाने का अधिकार देता है, का हवाला दिया। जवाब में अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (सी) नागरिकों के लिए है, न कि किसी संघ के लिए। कोर्ट ने साफ कर दिया कि बीसीसीआई या उसके सहयोगियों की तरफ से किसी भी तरह के अवरोध लगाने वाले प्रस्ताव को वह अच्छा नहीं मानेगी।

कोर्ट ने कहा, लोढ़ा समिति की सिफारिशों का मकसद बीसीसीआई को जवाबदेह, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना है और अगर इसके लिए संरचनात्मक परिवर्तन किए जाते हैं तो इसका विरोध क्यों? सीसीआई ने खेल में अपने योगदान को बताते हुए ब्रेबोर्न स्टेडियम और कई नामी खिलाडिय़ों को पहचान देने की बात कही। कोर्ट ने इस पर सीसीआई से पूछा कि अगर वह किसी क्षेत्र या लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है और बीसीसीआई से पैसा नहीं ले रही है तो वह कैसे खेल में अपना योगदान दे रही है।

कोर्ट ने कहा, अगर आप क्रिकेट को बढ़ावा दे रहे हैं तो आपको बीसीसीआई से पैसा क्यों नहीं मिलता। किसी के द्वारा यह कहना कि मैं क्रिकेट को बढ़ावा दे रहा हूं लेकिन बोर्ड से पैसा नहीं ले रहा, काफी मुश्किल है। कोर्ट ने यह बात दीवान द्वारा यह कहने पर कही कि हमने खेल में योगदान दिया है, इसलिए हमें बोर्ड से जुडऩे का और पूर्ण सदस्य के रूप में मत देने का अधिकार है।

कोर्ट ने पिछले पांच साल के खातों के माध्यम से सीसीआई को अपने दावों को सिद्ध करने को कहा है। मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने कोर्ट में कहा कि उसने खेल में ढांचागत सुविधाओं के माध्यम से अपना योगदान दिया है। इसलिए उसे बोर्ड के साथ जुड़े रहने का और पूर्ण सदस्य के रूप में मत देने का अधिकार है। इस पर अदालत ने पूछा कि, कैसे एक राज्य एक वोट से खेल को नुकसान हो सकता है?
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो