आईपीएल में कई बार नहीं पकड़े जा सके थे नो बॉल
आईपीएल के पिछले सीजन में नो बॉल को लेकर काफी बवाल मचा था। कई मैचों में पैर की नो बॉल पकड़े नहीं जा सके थे। ऐसी घटना सिर्फ आईपीएल में ही देखने में नहीं आ रही है, बल्कि कई अन्य अंतरराष्ट्रीय मैचों में भी देखने को मिला है। पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया के बीच ब्रिस्बेन में अभी समाप्त हुए पहले टेस्ट मैच के बाद तो इस विवाद ने काफी जोर पकड़ लिया है। दूसरे दिन के खेल के सिर्फ दो सत्रों में 21 पैर के नो बॉल नहीं पकड़े जा सके थे।
बीसीसीआई के संयुक्त सचिव जयेश जॉर्ज ने कहा कि यह नए तरीकों को लागू करने की बात है। नए अधिकारी यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे कि तकनीक का पूरा इस्तेमाल किया जा सके। आईपीएल में रन आउट कैमरे के इस्तेमाल पर उन्होंने कहा कि आईपीएल हमेशा प्रयोग के लिए रहा है। हमारी कोशिश है कि आईपीएल के हर सीजन में नई तकनीक लेकर आया जाए, ताकि खेल को आगे ले जाने में मदद करे। रही बात इस तकनीक को लागू करने की तो यह अभी प्रगति पर है। उन्होंने कहा कि जब तकनीक ऐसे मुद्दे सुलझाने में मदद कर सकती है तो फिर खिलाड़ी क्यों भुगते?
यह विवादित मुद्दा रहा है
संयुक्त सचिव ने कहा कि अतीत में भी हमने देखा है कि पैर की नो बॉल एक विवादित मुद्दा रहा है। उनका मानना है कि पैर की नो बॉल को पकड़ने के लिए तकनीक की मदद ली जा सकती है। इसके लिए बड़े पैमाने पर जांच की जरूरत है। साथ में यह भी कहा कि वह इसे विंडीज सीरीज में भी यह जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि विंडीज सीरीज के बाद जब पूरा डेटा आ जाएगा तो वह इस बारे में साथियों से चर्चा कर इस पर आगे बढ़ने पर विचार करेंगे।
यह मुद्दा इस महीने की शुरुआत में आईपीएल गर्विनंग काउंसिल के सामने भी उठा था। काउंसिल के एक सदस्य ने इस पर अपने विचार रखते हुए कहा था कि अगर अगले आईपीएल में सब कुछ ठीक रहा तो नियमित अंपायरों के अलावा नो बॉल जांच के लिए अलग अंपायर रखा जा सकता है।
यह है रन आउट कैमरा तकनीक
तीसरा अंपायर रन आउट की जांच करने के लिए जिस कैमरे का उपयोग करते हैं, उसी कैमरे का प्रयोग कोलकाता डे-नाइट टेस्ट में पैर की नो बॉल की जांच के लिए किया गया था। यह कैमरा एक सेकंड में 300 फ्रेम कैद करता है। इन कैमरा को ऑपरेटर अपनी इच्छा के मुताबिक जूम कर सकता है।