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भूखे पेट पानीपूरी बेची तो कभी था जूते पालिश करने को तैयार, मेहनत को मिला मुकाम अब खेलेगा टीम इंडिया में

locationनई दिल्लीPublished: Jul 14, 2018 03:04:31 pm

Submitted by:

Prabhanshu Ranjan

जहां छोटी-सी उम्र में ही बच्चे सोशल मीडिया के चुंगल में फस जाते हैं ऐसे में यशस्वी के पास न तो कोई स्मार्टफ़ोन है और ना ही वो किसी सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं । वो अपने खेल को लेकर बेहद फोकस रहते हैं। उन्होंने पिछले 5 सालों में करीब 49 शतक लगा दिए हैं।

भूखे पेट पानीपूरी बेची तो कभी था जूते पालिश करने को तैयार, मेहनत को मिला मुकाम अब खेलेगा टीम इंडिया में

भूखे पेट पानीपूरी बेची तो कभी था जूते पालिश करने को तैयार, मेहनत को मिला मुकाम अब खेलेगा टीम इंडिया में

नई दिल्ली । श्रीलंका दौरे पर जा रही भारत की अंडर-19 टीम में उत्तर प्रदेश के भदोही के यशस्वी जगह बनाने में सफल हुए हैं। मुंबई के आजाद मैदान पर पानीपुड़ी की दुकान पर काम करने वाले यशस्वी को भारत की अंडर-19 वनडे टीम में जगह मिली है। इस युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ी के कोच ज्वाला सिंह बताते हैं कि यशस्वी के अंदर क्रिकेट की एक दीवानगी है। वह पैसे के लिए नहीं नाम के लिए खेलना चहता है।

परिवार में छाई ख़ुशी की लहर
पूरा परिवार बेटे की इस उपलब्धि पर खुश है। सुरियावां नगर में पेंट की दुकान चलाने वाले पिता भूपेंद्र जायसवाल उर्फ गुड्डन ने बताया कि क्रिकेट यशस्वी के जिंदगी का सपना था। उसने कहा था जूते पालिश करना पड़ेगा तो भी करुंगा, लेकिन एक दिन अच्छा क्रिकेटर बन कर दिखाऊंगा। यशस्वी की प्रतिभा के कायल क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर भी हैं। उनके पिता बताते हैं कि सचिन ने यशस्वी को अपने घर भी बुलाया था और खेल के गुर सिखाने के बाद खुद के हस्ताक्षर से युक्त बल्ला सौंपा था। सचिन के बेटे का भी अंडर-19 टीम में चयन हुआ है लेकिन वह टेस्ट टीम में चुने गए हैं।

बचपन से है क्रिकेट से प्यार
यशस्वी के अंदर महज पांच साल की उम्र से क्रिकेट का जुनून सवार था। यशस्वी को नींद में क्रिकेट मैदान, बल्ला और गेंद दिखते थे। यशस्वी के पिता भी एक अच्छे क्रिकेटर रहे हैं और अपने बेटे के कोच भी। वो अहमदाबाद की सिल्वर कंपनी के लिए कभी खेला करते थे। भारत की अंडर-19 टीम बंगलौर में शिविर में हिस्सा ले रही है। इसी महीने भारतीय टीम श्रीलंका जाएगी।

मोंटी के नाम से मशहूर
यशस्वी की कामयाबी के पीछे क्रिकेट अकादमी चलाने वाले सर ज्वाला सिंह का हाथ हैं। जिन्होंने 10 साल की उम्र में उसकी प्रतिभा को समझा और उसे आजाद मैदान उठाकर अपने पास ले गए। उन्हें पूरा परिवार भगवान कहता है। यशस्वी के पिता के मोबाइल में इनका नाम मेरे भगवान नाम से सेव है। 11 साल की उम्र में यशस्वी आजाद मैदान का चहेता बन गया। उसे लोग मोंटी के नाम से बुलाने लगे। इसके पूर्व इसका दाखिला बाम्बे सेंट्रल के अंजुमन क्रिकेट स्कूल में करा दिया गया।

पापा ने हमेशा किया सपोर्ट
यशस्वी और तेजस्वी दोनों सगे भाई हैं। तेजस्वी भी अच्छा खिलाड़ी था, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। बचपन में यशस्वी को क्रिकेट से इतना लगाव था कि उसने घर में ही मैदान बना रखा था। रात के कड़ाके की ठंड में भी पापा को जगाता और खुद के हाथ में बल्ला लेता और पिता को गेंद थमा प्रैक्टिस करता। पिता दोनों को 2009 में एक साथ मुंबई लेकर गए और यशस्वी ने जिंदगी की सारी जद्दोजहद को झेला और सफल हुआ। मुंबई के घरेलू मैच में 319 रन का जहां रिकार्ड बनाया वहीं 13 विकेट भी लिए। 2017 में इसका चयन मुंबई की अंडर-16, 19 और 23 टीम के लिए हुआ। मुंबई प्रीमियर लीग में भी यशस्वी ने अपनी चमक बिखेरी। यहां से उसने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अंडर-14 मुकाबलों में इंग्लैंड में जीता था 10 हजार पाउंड का इनाम
भारत के मशहूर क्रिकेटर दिलीप वेंगसरकर इसे अंडर-14 में खिलाने के लिए इंग्लैंड लेकर गए। जहां यशस्वी ने दोहरा शतक जड़ा और 10 हजार पाउंड का इनाम जीता। मोंटी को जब समय मिलता तो वह आजाद मैदान पर पानीपुड़ी वाले अंकल की मदद करता और मैदान में होने वाले क्रिकेट की वह स्कोरिंग भी करता। उसने 10 साल की उम्र में मुंबई को अपने दिल में बसा लिया था। आज सचिन तेंदुलकर का बेटा अर्जुन उसका दोस्त है। वह कहता भी है कि हम दोनों की खूब जमती है। बेटे की इस उपलब्धि से मां कंचन और एकता, नम्रता के साथ बड़ा भाई तेजस्वी बेहद खुश हैं। उसकी इस कामयाबी पर सभी को गर्व है।

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