इस कारण भाजपा ने शाहीन बाग को बनाया मुद्दा
भाजपा ने शाहीन बाग को इसलिए मुद्दा बनाया था, क्योंकि आठ माह पहले भाजपा को इसी स्ट्रेटजी का लाभ पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनावों में मिला था। उसे उम्मीद थी कि पश्चिम बंगाल जैसा ही कुछ यहां भी हो सकता है। भाजपा को पश्चिम बंगाल में वोटों का ध्रुवीकरण करने का जबरदस्त फायदा मिला था। पश्चिम बंगाल में वह दो सीट से वह 18 तक जा पहुंची थी और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 12 सीटों का नुकसान हुआ था। ध्रुवीकरण के कारण भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों के वोट प्रतिशत बढ़े थे। भाजपा जहां 17 से 40 फीसदी पर पहुंच गई थी तो वहीं तृणमूल का वोट 40 फीसदी से बढ़कर 43 हो गया था। भाजपा ने वामदल और कांग्रेस के वोटों में जबरदस्त सेंधमारी की थी, जबकि तृणमूल को ज्यादा फायदा नहीं मिला था। दिल्ली में भी वह कुछ हद तक ऐसा करने में सफल रही, लेकिन वह इसका ज्यादा फायदा नहीं उठा पाई।
इस कारण उग्र राष्ट्रवाद का मुद्दा नहीं चला
आठ माह पहले आम चुनाव में दिल्ली की सातों लोकसभा सीट पर कब्जा करने वाली भाजपा विधानसभा की 70 सीटों में से सिर्फ 10-15 सीटें लेती दिख रही है। वहीं लोकसभा चुनाव में सातों सीट पर दूसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस का खाता खुलता नहीं दिख रहा है। अब सवाल उठता है कि आठ माह में ही ऐसा क्या हो गया कि दिल्ली की यही जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में खड़ी हो गई। इसका एक कारण यह है कि लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी रणनीति बदली। न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे टारगेट करना बंद किया, बल्कि एलजी से टकराव आदि जैसे तमाम नकारात्मक मुद्दों से किनारा कर लिया। और खुद को दिल्ली के विकास पर फोकस किया।
केजरीवाल ने दिल्ली के विकास पर खुद को किया केंद्रित
दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी अरविंद केजरीवाल दिल्ली के काम और विकास पर टिके रहें। उनकी पार्टी ने फ्री पानी-बिजली, झुग्गियों, अनधिकृत कॉलोनियों में किए गए अपने कामों पर खुद को फोकस किया। अमित शाह समेत भाजपा के तमाम दिग्गजों ने उन्हें उकसाने की तमाम कोशिशें की। शाहीन बाग और जामिया जैसे उग्र मुद्दों पर उन्हें घेरने और भड़काने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने काफी हद तक इन मुद्दों पर चुप्पी साधे रखी। यहां तक कि पूरे प्रचार के दौरान वह इन दोनों जगहों पर नहीं गए। उनकी पार्टी ने खुद को पूरी तरह स्थानीय मुद्दों और विकास पर केंद्रित रखा और अपने प्रचार को सकारात्मक बनाए रखा। इन मुद्दों पर आप की चुप्पी ने भाजपा के उग्र राष्ट्रवाद के एजेंडे की हवा निकालकर रख दी। जबकि भाजपा अपने पूरे प्रचार के दौरान उन्हें शाहीन बाग और जामिया के मुद्दे पर घेरने की कोशिश करती रही।
ऐसा नहीं है कि सबकुछ भाजपा के खिलाफ ही गया
ऐसा भी नहीं है कि सबकुछ भाजपा के खिलाफ ही गया। उसे सिर्फ ‘शाहीन बाग का करंट’ ही लगा हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक ने पश्चिम बंगाल के तर्ज पर वोटों का जो ध्रुवीकरण करने की कोशिश की, वह पूरी तरह नाकाम ही रहा। शाहीन बाग और जामिया को मुख्य चुनावी एजेंडा बनाने का उन्हें फायदा भी मिला। अगए एक्जिट पोल की मानें तो वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों को करीब-करीब बराबर मिला। भाजपा और आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के पांच फीसदी वोटों में सेंधमारी की। इनमें से तीन फीसदी वोट भाजपा को गए तो वहीं दो फीसदी वोट आम आदमी पार्टी के हिस्से में आए। इस कारण हिसाब करीब-करीब बराबर हो गया। भाजपा की ओर जो एक फीसदी वोट अधिक गए, इसी का नतीजा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को जहां 3 सीटें मिली थी, वह बढ़कर 10-15 सीटों में तब्दील होती नजर आ रही है, जबकि 67 सीटों वाली आप 67 से घटकर 55-60 पर आती दिख रही है।