पालमपुर के रहने वाले थे विक्रम-
विक्रम बत्रा मूलरूप से हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले थे। उनका जन्म 9 सितंबर 1974 को हुआ था। विक्रम की शुरुआती पढ़ाई डीएवी स्कूल, से हुई। फिर वो सेंट्रल स्कूल पालमपुर के छात्र बने। पालमपुर का यह सेंट्रल स्कूल सेना छावनी के पास था। स्कूल आते-जाते विक्रम भारतीय सेना को बहुत करीब से देखा करते थे। यही से उनमे सेना में नौकरी करने की इच्छा हो गई।
टेबल टेनिस में अव्वल थे विक्रम-
अपने स्कूली दिनों में विक्रम न केवल पढ़ाई बल्कि टेबल टेनिस में भी अव्वल दर्जे के खिलाड़ी थे। कॉलेज के दिनों में विक्रम एनसीसी से जुड़े। जहां उन्हें सर्वश्रेष्ठ कैडेट के रूप में चुना गया। पढ़ाई पूरी कर विक्रम सीडीएस के जरिए भारतीय सेना में दाखिल हुए। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू कश्मीर के सोपोर में सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली।
कारगिल युद्ध में हुए थे शहीद-
भारत पाकिस्तान के बीच साल 1999 में हुए कारगिल वॉर के समय विक्रम बत्रा ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। उस लड़ाई के समय विक्रम के नेतृत्व में भारतीय सेना ने कई पहाड़ी चोटियों को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराया था। उनके साहस और कुशलता को देखते हुए उन्हें कारगिल का शेर की उपाधि मिली थी। एक पहाड़ी चोटी को अपने कब्जे में लेने के बाद विक्रम ने रेडियो पर कहा था “यह दिल मांगे मोर”। उनका यह अल्फाज पूरे भारत में छा गया। 7 जुलाई 1999 को लड़ाई के दौरान अपने एक जख्मी जवान को बचाने के दौरान विक्रम को गोली लगी और वो “जय माता दी” कहते हुये वीरगति को प्राप्त हुए।