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खतरे की घंटी!

Published: Dec 12, 2015 04:38:00 am

Submitted by:

afjal

जयपुर से आतंककारी संगठन के एजेंट की गिरफ्तारी देश ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों की सरकारों और सुरक्षा एजेंसियों के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं। 

जयपुर से आतंककारी संगठन के एजेंट की गिरफ्तारी देश ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों की सरकारों और सुरक्षा एजेंसियों के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं। 

इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन जैसी प्रतिष्ठित कम्पनी के मार्केटिंग मैनेजर का दुनिया के सबसे खतरनाक आतंककारी संगठन आईएसआईएस के लिए काम करना गंभीर मसला है। गिरफ्तार एजेंट अप्रेल 2014 से जयपुर में रहकर युवाओं को अपने जाल में फंसा रहा था। 

गिरफ्तार मोहम्मद सिराजुद्दीन अनेक आतंककारियों के सम्पर्क में था। यानी पिछले 21 महीनों से वह बेधड़क अपने काम को अंजाम दे रहा था लेकिन सुरक्षा एजेंसियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। 

सिराजुद्दीन की गिरफ्तारी को संकेत के रूप में लेते हुए सुरक्षा एजेंसियों को और सतर्क होने की जरूरत है। दुनिया भर में आतंकवाद के फैलते जाल को सिर्फ लम्बे-चौड़े बयानों के सहारे नहीं काटा जा सकता। 

न ही सेमिनार और विरोध प्रदर्शन के जरिए इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना है तो उससे निपटने के तमाम विकल्पों पर एक साथ काम करना होगा। जयपुर सरीखे शहर में आतंककारी संगठन का कोई एजेंट 21 महीने तक अपने काम को अंजाम देता रहे तो इसे किसकी चूक मानी जाएगी? आतंकवाद निरोधक दस्ते की टीम ने उसे गिरफ्तार करने में सफलता पाई, इसके लिए वह बधाई की पात्र है लेकिन सिराजुद्दीन का इतने दिनों तक नहीं पकड़ा जाना सुरक्षा एजेंसियों के कामकाज पर सवालिया निशान तो लगाता ही है। लगता है कि राज्य सरकारें आतंकवाद से निपटने के मामले में गंभीर नहीं हैं। 

इंटरनेट के इस युग में किसी भी विचारधारा का फैलाव न तो पम्पलैट व पोस्टरों के जरिए होता है और न चि_ी-पत्री के माध्यम से। आज के दौर में सोशल मीडिया विचारों के आदान-प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है।

 इसलिए आतंकवाद पर नकेल कसनी है तो उस पर काबू पाने के तरीकों को भी बदलना होगा। इसके अनुरूप आधुनिक तैयारी भी करनी होगी और इसके लिए जरूरी बजट भी मुहैया कराना होगा। जरूरत इस बात के अध्ययन की भी है कि युवा 

आतंकवाद की तरफ रुख कर क्यों रहे हैं? आतंकवाद को परास्त करने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारों की ही नहीं, हर नागरिक की है। आम जनता को भी अपने तरीके से इस काम में सुरक्षा एजेंसियों का हाथ बटाना होगा। 

अपने आस-पास हो रही गतिविधियों पर न सिर्फ नजर रखनी होगी बल्कि संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी पुलिस प्रशासन तक भी पहुंचानी होगी क्योंकि आतंकवाद से सबसे अधिक कोई प्रभावित होता है तो वह आम जनता ही है।

आतंकवाद पर नकेल कसनी है तो उस पर काबू पाने के तरीकों को भी बदलना होगा। आधुनिक तैयारी और जरूरी बजट भी मुहैया कराना होगा। जरूरत इस अध्ययन की भी है कि युवा आतंकवाद की तरफ रुख कर क्यों रहे हैं? 
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