#Coronavirus को लेकर पीएम मोदी की बड़ी घोषणा, 1 लाख रुपये का इनाम देने का ऐलान याचिका में कहा गया है, “नया सबूत स्कूल के रजिस्टर में सामना आया है। इसमें याचिकाकर्ता की जन्मतिथि आठ अक्टूबर 1996 बताई गई है। इसके अनुसार घटना के दिन उसकी उम्र 16 साल दो महीने और आठ दिन थी।”
याचिकाकर्ता की ओर से दलील में कहा गया कि नाबालिग होने के तथ्य दिल्ली पुलिस ने जानबूझकर अदालत से छिपाए। ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने भी इस तथ्य को नजरअंदाज किया। ये सब मीडिया और जनता के दबाव में हुआ।
दरअसल 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए पवन गुप्ता की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने दावा किया था कि 2012 में जब ये घटना हुई तब वह नाबालिग था। इसके बाद उसकी पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया था।
कोरोनावायरस को लेकर सामने आई सबसे बड़ी जानकारी, साबुन-हैंड सैनेटाइजर के इस्तेमाल पर खुलासा न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा था कि याचिका में कोई आधार नहीं मिला है। इस मामले में पहले ट्रायल कोर्ट, फिर हाईकोर्ट और जुलाई 2018 में पुनर्विचार याचिका में सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका है। इसलिए बार-बार इस मामले में याचिका को अनुमति नहीं दी जा सकती।
वहीं, पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि पुलिस ने जनवरी 2013 में आयु परीक्षण प्रमाण पत्र लगाया था और उसके मां-पिता ने भी इसकी पुष्टि की थी। दोषी ने कभी भी इस पर विवाद नहीं किया। बार-बार दोषी को याचिका दाखिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
निर्भया के दोषियों को 20 मार्च को फांसी दी जानी है। याचिका में दोषी को फांसी की सजा पर रोक लगाने की प्रार्थना की गई है।
आपकी जेब में रखे करेंसी नोट से भी है कोरोना वायरस का खतरा, आरबीआई ने जारी की एडवायजरी इस बीच वकील एपी सिंह ने मृतक दोषी राम सिंह की ओर से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया और जेल में राम सिंह की मौत के लिए उसके नाबालिग बेटे को मुआवजे प्रदान कराने की मांग की। याचिका में मृत्युदंड पाए चारों दोषियों की फांसी की सजा पर भी रोक लगाने की मांग की गई है।