त्रिपुरा सीएम बिप्लब देब की फिसली जुबान, अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही दे डाला बड़ा बयान दरअसल राजौरी जिले का सलीम गैस टैंकर लेकर दो लोगों के साथ लेह निकला था। बीती 7 जून को उनका टैंकर करगिल के पास सिंध नदी में गिर गया और तेज बहाव में पाक पहुंच गया। टैंकर पर लिखे नंबर पर पीओके से आई कॉल से पिता कबीर को बेटे सलीम के मरने की जानकारी मिली।
भारतीय होने पर शव को जमीन में गाड़ दिया
देश के तीन सपूतों को पाकिस्तान ने अपनी संकुचित मानसिकता शिकार बनाया है। जब पाकिस्तान को पता चला कि टैंकर के साथ बहर आए तीनों युवक भारत से हैं तो उन्होंने इन तीनों के शवों को जमीन में ही गाड़ दिया है। मृतक राजौरी जिले के रहने वाले हैं इनका नाम सलीम, शौकत और जब्बार है। सलीम के मां-बाप दिल्ली में दर-दर भटक कर बेटे के शव को भारत लाने की गुहार लगा रहे हैं…वो चाहते हैं वे अपने बेटे के शव को भारत में ही दफनाएं।
देश के तीन सपूतों को पाकिस्तान ने अपनी संकुचित मानसिकता शिकार बनाया है। जब पाकिस्तान को पता चला कि टैंकर के साथ बहर आए तीनों युवक भारत से हैं तो उन्होंने इन तीनों के शवों को जमीन में ही गाड़ दिया है। मृतक राजौरी जिले के रहने वाले हैं इनका नाम सलीम, शौकत और जब्बार है। सलीम के मां-बाप दिल्ली में दर-दर भटक कर बेटे के शव को भारत लाने की गुहार लगा रहे हैं…वो चाहते हैं वे अपने बेटे के शव को भारत में ही दफनाएं।
मौसम अलर्टः बदल रहा है मौसम का मिजाज, राजस्थान से गुजरात तक अच्छी बारिश की संभावना मौत के बाद भी सरहद बनी दीवार
जीते जी तो भारत-पाकिस्तान के बीच नफरत की दीवार खड़ी है लेकिन इस मामले में तो मौत के बाद भी सरदह पार से नफरत की बू आ रही है। मौत के बाद भी तीनों शव दो मुल्कों की सरहद में अटककर रह गए। हिंदुस्तानी होने की वजह से वहां न कांधे मिले और ना ही कब्र।
जीते जी तो भारत-पाकिस्तान के बीच नफरत की दीवार खड़ी है लेकिन इस मामले में तो मौत के बाद भी सरदह पार से नफरत की बू आ रही है। मौत के बाद भी तीनों शव दो मुल्कों की सरहद में अटककर रह गए। हिंदुस्तानी होने की वजह से वहां न कांधे मिले और ना ही कब्र।
शौकत और जब्बार के शव पाकिस्तान में कहां फंसे, यह किसी को नहीं पता। मगर सलीम का शव पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में रखा है। बेटे के शव को वतन वापस लाने के लिए कश्मीर से आए मां-बाप पिछले एक महीने से दिल्ली में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। हाथ में फाइलें हैं और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मदद की गुहार भी लगा चुके है। दिन निकलते ही दोनों मां-बाप इस आस में निकल पड़ते हैं कि शायद आज बेटे के शव को लाने में कामयाबी मिलेगी, लेकिन शाम ढलते ही उनकी उम्मीद भी दम तोड़ने लगती है। अब तो जेब में पैसे नहीं बचे हैं, जामा मस्जिद के बाहर बैठकर जो मिलाता है वो खाकर गुजारा कर रहे हैं।