आज होगी सुनवाई
याचिकाकर्ता जोसेफ शाइन ने दंड प्रक्रिया संहिता 198 को भी चुनौती दी है, जिसमें व्यभिचारी संबंध बनाने वाली विवाहिता के पति को शिकायत दर्ज करने की अनुमति होती है, लेकिन व्यभिचारी संबंध बनाने वाले मर्द की व्यथित पत्नी को शिकायत दर्ज करने की अनुमति नहीं होती है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि प्रावधान ‘बिल्कुल पुरातन प्रतीत होता है’। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को मामल में जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है। सर्वोच्च अदालत शादीशुदा महिला को संरक्षण देने वाली आईपीसी की धारा 497 (व्याभिचार (एडल्टरी) और सीआरपीसी की धारा 198(2) की वैधानिकता परखेगा। जिसके बाद महिलाओं को भी इस दायरे में लाया जा सकता है।
157 साल पुराना कानून
बता दें कि अभी तक विवाहेतर संबंध बनाने पर महिला को अपराधी नहीं माना जाता है। इससे जुड़ा 157 साल पुराना कानून सर्वोच्च न्यायालय के स्कैनर पर है। इस दौरान देश की सर्वोच्च अदालत इस बात पर विचार करेगी कि विवाहित महिला के किसी गैर-मर्द से संबंध बनाने में केवल पुरुष को ही दोषी क्यों समझा जाता है, महिला को क्यों नहीं? सर्वोच्च अदालत शादीशुदा महिला को संरक्षण देने वाली आईपीसी की धारा 497 (व्याभिचार (एडल्टरी) और सीआरपीसी की धारा 198(2) की वैधानिकता परखेगा। जिसके बाद महिलाओं को भी इस दायरे में लाया जा सकता है।