महिलाएं सुबह उठकर वट सावित्री की पूजा को लेकर तैयारी की। एकत्रित होकर महिलाएं पहुंची और वटवृक्ष का पूजन किया। सूर्य देवता को जल अर्पण किया। इसके बाद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वट वृक्ष पर सूत्र बांधते हुए परिक्रमा लगाई और पति की लंबी आयु की कामना की। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन वटवृक्ष की पूजा से सौभाग्य एवं स्थाई धन और सुख शांति की प्राप्ति होती है। संयोग की बात है कि इसी दिन शनि महाराज का जन्म हुआ है। सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की।
सावित्री और सत्यवान की कथा से वटवृक्ष का महत्व लोगों को ज्ञात हुआ, क्योंकि इसी वृक्ष ने सत्यवान को अपनी शाखाओं और सिराओं से घेरकर जंगली पशुओं से उनकी रक्षा की थी। इसी दिन से जेष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन वट वृक्ष की पूजा का नियम शुरू हुआ। इसे लेकर महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की परिक्रमा लगाकर अपने परिवार की सुख समृद्धि का आशीर्वाद की कामना करती हैं।
उन्होंने पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते हुए कच्चे सूत के धागे को बरगद के पेड़ से लपेट ते हुए परिक्रमा की, जल चढ़ाकर उसको वृक्ष को सींचा, तत्पश्चात सत्यवान और सावित्री की कथा सुनते हुए व्रत को पूरा किया।