डबरा और भितरवार विधानसभा की बात की जाए तो वर्ष 2008 और वर्ष 2013 में बाहरी उम्मीदवारों को टिकिट दिए जाने पर मतदाताओं ने नकार दिया। पैराशूट (बाहरी) उम्मीदवारों को उतारने पर पार्टी को हार के रूप में खामियजा भी भुगतना पड़ता है जो कि डबरा और भितरवार विधानसभा सबसे बड़े उदाहरण है।
डबरा विधानसभा क्रं.19 की बात की जाए तो वर्ष 2008 में भाजपा ने स्थानीय कार्यकर्ताओं पर भरोसा न करते हुए अचानक हाईकमान ने बाहरी भांडेर के कमलापत आर्य को प्रत्याशी घोषित कर दिया था जबकि स्थानीय सुरेश राजे समेत बृजमोहन परिहार दावेदारी कर रहे थे। वृजमोहन परिहार टिकिट नहीं मिलने पर पार्टी से नाराज होकर बागी बन गए थे और समानता दल का हाथ थाम लिया था। यही वजह रही कि भाजपा जीत हासिल नहीं कर पाई।
इसी प्रकार बसपा ने भी श्योपुर के बाहरी उम्मीदवार हरगोविंद जौहरी को अपना प्रत्याशी बनाया था। जबकि स्थानीय दावेदारी कर रहे प्रीतम राजौरिया का नाम सामने आया था। बाहरी होने की वजह से जहां मतदाताओं ने नकारा वहीं स्थानीय दावेदारों ने टिकिट नहीं मिलने की वजह से बागी की भूमिका निभाई और पार्टी को सेंध लगाने का काम किया। जिस कारण कांग्रेस की इमरती देवी सुमन ने स्थानीय होने की वजह से जीत हासिल की। वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव में डबरा से भाजपा ने कप्तानसिंह सहसारी को दिया है जो कि पैराशूट की भूमिका में है।
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वर्ष 2013 में भितरवार विधानसभा क्रं.18 से भाजपा ने ग्वालियर के अनूप मिश्रा को पैराशूट के रूप में प्रत्याशी बनाकर चुनावी मैदान उतारा। जबकि स्थानीय दावेदारी कर रहे बृजेन्द्र तिवारी, कौशल शर्मा को पार्टी का मुंह तांकना पड़ा था। हालांकि बृजेन्द्र तिवारी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी समर में कूंद कर पार्टी को हराने का प्रयास करने का काम किया वहीं मतदाताओं ने भी अनूप मिश्रा को बाहरी होने की वजह से नकार दिया।
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बसपा ने भी 2013 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर के रामनिवास गुर्जर को टिकट दिया था जबकि स्थानीय दावेदारी कर रहे बीनू पटेल, अलोक शर्मा, और जवाहरसिंह रावत को टिकट नहीं दिया गया। जवाहरसिंह रावत ने टिकिट नहीं मिलने पर बहुजन संघर्ष दल का दामन थाम कर चुनाव लड़ा था। हालांकि चुनाव हार गए थे। कांग्रेस से लाखन सिंह ने जीत हासिल की। हालांकि कमल दल ने फिर से अनूप मिश्रा पर विश्वास जताया है।
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