मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष पं. सुरेश मेहता ने बताया कि 1745 में मंदिर निर्माण के बाद 1746 में मां पार्वती की प्रतिमा की स्थापना की गई थी। उस दौरान नवरात्र पर दो शत चंडी यज्ञ आयोजित किए गए थे, उसके बाद इस परंपरा का निर्वहन आज भी होता आ रहा है। भगवती पार्वती माता का तिथि के अनुसार भिन्न- भिन्न स्वरूपों में विशेष श्रंगार मंदिर के पुजारी द्वारा किया जाता है। मेहता ने मंदिर के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि मंदिर का निर्माण नागोजी राव चांदोरकर द्वारा कराया गया था। माता पार्वती की प्रतिमा भक्तों को आकर्षित करती है व इनमें आस्था रखने वालों को आशीर्वाद प्रदान करती है।
मंदिर ट्रस्ट के प्रबंधक पं. रामकृपाल पाठक ने बताया कि नवरात्र में भगवती जगदंबा की आराधना निश्चित ही सफलता को प्रदान कराती है। पाठक ने बताया कि दुर्गा सप्तशती में उल्लेख मिलता हैै कि किसी को कितना भयंकर रोग क्यों ना हो, कोई धन हीन व्यक्ति या शत्रु बाधा से पीडि़त ही क्यों न हो अगर वह 9 दिनों तक व्रत रखकर भगवती जगदंबा की आराधना करता है, तो निश्चित उसकी समस्त मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं। इसमें किसी को भी संशय नहीं करना चाहिए। उन्होंने बताया कि दुर्गा सप्तशती में मंत्र आता है कि सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वित:मनुष्योमत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: जो भी भक्त श्रद्धा पूर्वक इस मंत्र का जाप करता है।
वह साक्षात भगवती माता पार्वती के कृपा रूपी प्रसाद को प्राप्त करता है। उन्होंने बताया कि संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थी व मंदिर के समस्त पुजारियों के द्वारा यह अनुष्ठान 9 दिन तक जारी है। उसी क्रम में अष्टमी तिथि को तथा नौवीं तिथि को मंदिर परिसर में स्थित यज्ञशाला में हवन कराया जाता है। साथ ही राष्ट्र कल्याण के लिए देव जागेश्वर नाथ व माता पार्वती के चरणों में पुष्पांजलि समर्पित की जाती है। मंदिर ट्रस्ट के पंकज हर्ष श्रीवास्तव व अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि साल भर राष्ट्र कल्याण के निमित्त मंदिर ट्रस्ट की ओर से देव जागेश्वर नाथ का रुद्राभिषेक मंदिर के पुजारियों द्वारा मंदिर के प्रबंधक के मार्गदर्शन में किया जाता है। मंदिर ट्रस्ट के समस्त पदाधिकारियों द्वारा देव दर्शनार्थ आने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार की कोई असुविधा न हो इसलिए समय-समय पर मंदिर में व्यवस्थाओं का जायजा लिया जाता है।