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रिश्तों की डोर को तोड़कर अहिंसा के पथ पर चलीं जिले की कई विभूतियां

locationदमोहPublished: Feb 18, 2022 07:42:18 pm

Submitted by:

pushpendra tiwari

त्याग के पथ पर जिले की 2 महिला संत सहित 7 आचार्य, 5 मुनि व 1 छुल्लक बने
 

रिश्तों की डोर को तोड़कर अहिंसा के पथ पर चलीं जिले की कई विभूतियां

पंचकल्याणक महोत्सव

दमोह. अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह इन पांच व्रतों को अपनाकर ही जैन मुनि बन पाना संभव होता है, इन्हें अपनाकर अंहिसा परमोधर्म के रास्ते पर चलने वाले मुनि पंचकल्याणक महोत्सव की शोभा बढ़ा रहे हैं। इन मुनियों में कुछ मुनि ऐसे भी हैं, जिन्होंने दमोह की धरती पर जन्म लेकर जिले को गौरवांवित किया है। जानकारी अनुसार दमोह में जन्म लेने वालीं ०७ विभूतियां आचार्यश्री पद पर शोभित हैं व ०४ मुनिश्री के रूप में धर्मध्वजा संभाल रहे हैं। बता दें कि त्याग पथ पर दमोह से न सिर्फ पुरूष आगे आए बल्कि दो महिलाओं ने भी बैराग्य को धारण किया, जो माताश्री पद पर रहते हुए समाज को धर्म की राह पर चलने का संदेश दे रहीं हैं।
7 आचार्य, 5 मुनि, 2 आर्यिका, 1 क्षुल्लक बने

जैन संतों में शामिल 7 आचार्य, 5 मुनि, 2 आर्यिका, 1 छुल्लक पद पर शोभित हैं, जिन्होंने दमोह जिले के विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया। इनमें आचार्य विराग सागर पथरिया में जन्में, एलाचार्य विशुद्ध सागर धनेटा में जन्मे, आचार्य सिद्धांत सागर पटेरा, आचार्यश्री सौभाग्य सागर ने दमोह में जन्म लिया, इसी तरह आचार्य सुनील सागर किशनगंज, आचार्य उदार सागर दमोह, आचार्य आर्जव सागर पथरिया में जन्में हैं। इसी तरह मुनिश्री निराग सागर ने पथरिया में जन्में, मुनि निर्मोह सागर दमोह में, मुनि महत सागर पथरिया में, मुनि विरंजन सागर सदगुवां व मुनि कुंथू सागर समनापुर गांव में जन्में हैं।
2 महिला संतों ने अपनाया बैराग्य

मुनियों की भांति आर्यिका पद पर शोभित होने वालीं दो महिला संतों ने भी दमोह में जन्म लिया, जो आर्यिका बनीं। इनमें प्रशांतमति माता जी, विसुदृढ़ मतिमाताजी शामिल हैं। साथ ही नोहटा के विसौम्य सागर छुल्लक बनकर त्याग के रास्ते पर हैं।
2 महान विभूतियों के स्मरण साथ

जिले के तेंदूखेड़ा तहसील अंतर्गत आने वाला गुहंची गांव राष्ट्रीय संत रहे तरूण सागर महाराज की जन्म स्थली है। साथ ही मुनि विप्रण सागर भी दमोह तहसील के राजा समन्ना में जन्में थे। आज इन महान संतों के स्मरण लोगों को अहिंसा के रास्ते पर चलने की सीख दे रहे हैं।
बेटा बना मुनि, तो पिता भी ले रहे आशीष

पंचकल्याणक महोत्सव में इस समय दमोह की धरा पर जन्म लेने वाले मुनि भी मौजूद हैं। इन मुनियों के बैराग्य पथ पर चलने से पहले, जो इनके परिजन थे वह भी कुंडलपुर दर्शनों के लिए पहुंच रहे हैं। जब कभी दोनों पक्षों का आमना सामना होता है, तो पूर्व में संबंध रखने वाले लोग भी मुनि के समक्ष माथा टेकते हैं और आशीष लेते हैं। क्योंकि रिश्तों की डोर तो मुनि बनने से पहले ही टूट जाती है।
आहार देने के बाद पिता भी बने मुनि

बता दें कि पत्रिका ने ऐसे ही एक दृष्य को कुछ समय पहले कवर किया था, जिसमें एक मुनि को आहार कराने वाले श्रावक माता पिता व अन्य परिजन थे। लेकिन मुनिश्री को इस बात से कोई सरोकार नहीं था कि उन्हें आहार देने वाले कौन हैं, उनकी नजरों में वह मात्र श्रावक थे, जो आहार दे रहे थे। वहीं इसके आगे परिवर्तन यह हुआ कि बेटे के मुनि बनने के बाद पिता ने भी त्याग पथ की राह पकड़ ली और पिता भी मुनि बन गए, जो आज मुनि महत सागर के रूप में पहचाने जाते हैं। मुनि बनकर अपने ही माता पिता को श्रावक के रूप में पाकर आहार करने वाले मुनिश्री निराग सागर इस समय कुंडलपुर में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में शामिल हैं।
फोटो- आचार्य सिद्धांत सागर
आचार्य विराग सागर
आचार्य सुनील सागर
आचार्य आर्जव सागर
एलकाचार्य विशुद्ध सागर
मुनिश्री महत सागर
मुनिश्री निराग सागर
मुनिश्री निर्माेह सागर
मुनिश्री तरूण सागर
मुनिश्री विरंजन सागर
मुनिश्री कुंथू सागर

 

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