9.5 इंच बारिश कम तो आधा रह गया खरीफ फसलों का रकबा
जल भराव न होने से खरीफ सीजन की सिंचाई में रीत जाएंगे तालाब
9.5 inches of rain less then half the area of Kharif crops
दमोह. कहा जाता है कि भारतीय कृषि मानसून आधारित एक जुआ है, जिस पर दाव लगाकर लाभ हानि होती है। इस साल भीषण गर्मी के दौर में तूफानी बारिश ने मानसून की चाल बिगाड़ दी है जिससे दमोह जिले में पिछले साल की तुलना में इस साल 9.5 इंच कम बारिश होने खरीफ सीजन की धान व सोयाबीन का रकबा आधा बचा है, वहीं कम पानी होने से रबी सीजन के लिए जलसंकट के आसार बढऩे लगे हैं।
दमोह जिले में कृषि विभाग ने खरीफ सीजन की फसलों का लक्ष्य 3 लाख 20 हजार हेक्टेयर में बोवनी का निर्धारित किया था, लेकिन मानसून बिगडऩे पर महज 1 लाख 59 हजार हेक्टेयर में ही इस बार पहली बोवनी की गई थी। दमोह जिले का जबेरा ब्लॉक धान की पैदावार व पथरिया ब्लॉक सोयाबीन की पैदावार में अव्वल माना जाता है। इन दोनों ब्लॉकों में ही बारिश सामान्य से कम दर्ज की गई है।
छिटका वालों ने नहीं की दूसरी बोवनी
दमोह जिले के जबेरा ब्लॉक का माला जलाशय क्षेत्र के कैचमेंट एरिया में आने वाले गांवों में धान की खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है। इस बार जिले में 90 हजार हेक्टेयर में धान की बोवनी का लक्ष्य रखा गया था, जिसके मुकाबले पहली बोवनी 32 हजार हेक्टेयर में हो पाई थी। गौरतलब है कि यहां के जिन किसानों ने छिटका पद्धति से बोवनी की थी, लेकिन यहां पानी नहीं गिरने बीज अंकुरित नहीं हो पाए। जिससे इन किसानों ने फिर से दूसरी बोवनी की हिम्मत नहीं जुटाई।
रोपा पद्धति वाले कर रहे सिंचाई
ेेेेेेेेेेेजिले में सर्वाधिक धान की खेती रोपा पद्धति से की जाती है, जिसके लिए सर्वाधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है। इस बार किसानों ने बारिश नहीं होने से रोपा लगाने के लिए अपने खेतों को भरने के लिए कुओं व ताल, तलैयों के पानी का उपयोग करना शुरू कर दिया है। जिससे जलस्रोतों का पानी खरीफ सीजन मेें ही रीतने लगा है। किसानों का कहना है माला जलाशय का जलभराव होने के बावजूद शून्य नदी में तो पानी आ गया लेकिन धान की खेती के लिए सिंचाई किए जाने से पानी की कमी आने लगी है।
सोयाबीन का रकबा भी घटा
इस बार बारिश कम होने के कारण सोयाबीन का लक्ष्य भी घटा है। कृषि विभाग द्वारा 1 लाख 25 हजार हेक्टेयर में बोवनी का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन इस बार महज 55 हजार हेक्टेयर में ही बोवनी की गई थी। जिससे 44 फीसदी ही बोवनी की गई है। किसानों का कहना है कि बारिश की चाल देखकर जिन किसानों के पास पर्याप्त सिंचाई के संसाधन नहीं थे वे उन्होंने इस बार सोयाबीन की बोवनी नहीं की।
पारा 33 पर उड़द व मूंग में इल्ली
बारिश नहीं होने के कारण दिन का तापमान भी बढ़ रहा है अधिकतम तापमान 30 से 33 के बीच ऊपर नीचे हो रहा है, जिससे खरीफ सीजन की मूंग व उड़द में कई जगह इल्ली का प्रकोप देखा जा रहा है। नोहटा क्षेत्र के किसान सुंदर बाल्मीक का कहना है कि कम बारिश के कारण जहां फसलें सूख रही हैं, वहीं उड़द व मूंग में इल्ली का प्रकोप बढऩे लगा है।
पिछले साल की तुलना में कम बारिश
जिले में इस साल 1 जून से अभी तक 433.7 मिमी् अर्थात 17 इंच औसत बारिश दर्ज हुई है। जो अभी तक गत पिछले साल से 238.8 मिमी अर्थात 9.5 इंच कम है। इसी अवधि में पिछले साल 672.5 मिमी अर्थात 26.5 इंच औसत बारिश दर्ज की गई थी। अभी तक जिले में सबसे अधिक पटेरा में 566 मिमी व सबसे कम तेंदूखेड़ा में 174.4 मिमी बारिश दर्ज की गई है। इसके अलावा दमोह में 443 मिमी, हटा में 540 मिमी, जबेरा में 515.8 मिमी, पथरिया में 481 मिमी व बटियागढ़ में 316 मिमी बारिश दर्ज की गई है।
इस साल बन रही सूखे की स्थिति
मौसम के संदर्भ में जानकारी रखने वाले किसानों का कहना है कि 1986 से 1988 तक तीन साल लगातार सूखा पड़ा था, इसके बाद 2000 से 2005 तक लगातार 5 साल सूखे के रहे। एक साल छोड़कर 2007 से 2010 तक सूखे की स्थिति बनी रही है। इसके बाद 2015 व 2016 में सूखा का सामना करना पड़ा था। पिछले साल सही निकले अब कम बारिश होने से सूखे के हालात बनते नजर आ रहे हैं। जिससे खरीफ के बाद रबी सीजन में सिंचाई का संकट और ग्रीष्मकाल में पेयजल संकट की स्थिति बन सकती है।
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