इसमें मान्यता होती है जिस प्रकार वाराणसी में भैरव जी को काशी का कोतवाल कहा जाता है, उसी प्रकार श्रीदेव जागेश्वर नाथ धाम के कोतवाल के रूप में भैरव जी का पूजन किया जाता है। भैरव जी का पूजन करने से समस्त प्रकार की आधिव्याधि दूर हो जाती है। सभी प्रकार के शत्रुओं का शमन होता है। इसलिए सभी को चाहिए कि वह भोलेनाथ जी, माता पार्वती के दर्शनों के साथ साथ भैरव दर्शन पूजन भी विशेष रूप से करें।
शिवपुराण के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अत: इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहां तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई थी।