शारदेय नवरात्र पर देवी प्रतिमाओं की स्थापना को लेकर जब ऐतिहासिक तथ्यों को खंगाला गया तो यह महत्वपूर्ण जानकारी प्रकाश में आई है।
हटा। जिले भर में इकलौती दुर्गा की प्रतिमा को नौ दिनों तक रखे जाने की शुरुआत नगर के सेठ परिवार द्वारा की गई थी। शारदेय नवरात्र पर जिले में देवी प्रतिमाओं की स्थापना को लेकर जब ऐतिहासिक तथ्यों को खंगाला गया तो यह महत्वपूर्ण जानकारी प्रकाश में आई है।
जिले की पहली दुर्गा प्रतिमा रामगोपाल जी वार्ड स्थित मूलचंद अग्रवाल मुलू सेठ ने वर्ष 1940 में अपने निज निवास रखी थी, जो उन्होंने स्वयं तैयार की थी। 77 साल पूर्व होने वाली इस शुरुआत के संबंध में मुलू सेठ के 65 वर्षीय पुत्र किशुन अग्रवाल ने बताया कि पिता की मृत्यु के बाद यह सिलसिला उनके द्वारा जारी रखा गया और आज भी वह प्रतिमा को उसी स्थान पर रखते है, जहां से इसकी शुरुआत की गई थी।
उन्होंने बताया कि 1973 में पिताजी का देहांत होने के उपरांत यह जिम्मा उनके द्वारा उठाया जाने लगा। किशन लाल ने बताया है कि उस समय बिजली नहीं थी और हम लोगों के द्वारा दशहरा मनाने के लिए पहली बार मशालों को जलाया गया और रामगोपाल जी सरकार के नाम का अखाड़ा बनाकर लाठियों के साथ जुलूस निकाला, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा इस पर पाबंदी लगा दी गई और सभी लोगों को हिरासत में लेकर लाठियों को भी जब्त कर लिया गया था।
सौ साल से ज्यादा
कलेही माता का मंदिर में लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है। गांव के बुजुर्गों ने बताया है कि माता की स्थापना हुए आज 100 साल से भी ज्यादा हो गए हैं, माता जब प्रकट हुई थी तो गांव के एक रजक परिवार को सपने में दर्शन दिए थे और कहा था की हमारी स्थापना करो।
गांव के बुजुर्ग अनुरुद्ध प्रसाद दुबे ने बताया है कि माता ने मिठल्ले रजक को दर्शन दिए थे, जिस पत्थर पर माता का अक्श निकला है, उस पर गांव वाले नाले में कपड़े धोतेे नहाते थे। सभी गांव वालों ने उस पत्थर को नाले से निकाला और देखा तो उसमें माता का अक्श निकला था। गांव वालों ने माता कलेही की स्थापना की और सच्ची श्रद्धाभाव से सभी माता को मानने लगे। माता की सेवा रजक परिवार तीन पीढ़ी से कर रहा है।