६२१० में से नहीं बचा पाए २११ नवजात –
जिला अस्पताल में होने वाले प्रसव के दौरान सितंबर तक कुल ६२१० प्रसव जिला अस्पताल में कराए गए। जिसमें जिला अस्पताल में होने वाले प्रसव के दौरान २११ नवजात ऐसे रहे जिनकी कोख में ही मौत हो गई। चाहकर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। इसके पीछे विभाग अलग-अलग कारण बताती नजर आ रही है।
इन प्रसूताओं को नहीं बचाया जा सका –
प्रसूताओं का सुरक्षित प्रसव कराना भी एक बड़ी जिम्मेवारी होती है। प्रसव के दौरान भी प्रसूता को बचा पाने में कई बार अस्पताल प्रबंधन असफल साबित होता है। सरकारी रिकॉर्ड देखा जाए तो वर्ष २०१९ में सितंबर तक ४ प्रसूताओं की मौत हो चुकी है। मौत का कारण प्रसव के दौरान हाइब्लड प्रेशर, खून की कमी सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आई है।
बच्चा की मौत पर दी कोतवाली में शिकायत –
जिला अस्पताल में ८ सितंबर रविवार को भर्ती कराई गई एक महिला की कोख में नवजात की मौत होने के बाद उसे जिला अस्पताल से निजी अस्पताल ले जाया गया था। गोवर्धन अहिरवार नामक व्यक्ति ने बताया था कि उसकी बेटी प्रियंका पति रवि अहिरवार का प्रसव के पूर्व जिला अस्पताल में नवजात की मौत हो गई थी। जिसको लेकर नवजात की कोख में ही मौत होने पर अस्पताल प्रबंधन को जिम्मेवार ठहराते हुए एक शिकायत कोतवाली में भी दी थी। हालांकि बाद में इस मामले में प्रबंधन ने अपना पक्ष रखकर मरीजों के परिजनों को ही लापरवाही बरतना बता दिया था। दूसरे मामले में प्रसूता कुंती बाई पति प्रीतम कुर्मी (३०) निवासी चरखारी गढ़ाकोटा का प्रसव गढ़ाकोटा स्वास्थ्य केंद्र में हुआ था। जिसमें बेटी को जन्म देने के बाद नवजात की मौत हो गई थी। उसके प्रसूता की स्थिति गंभीर होने पर उसे गढ़ाकोटा से दमोह जिला अस्पताल रेफ र किया गया। लेकिन जब महिला को जिला अस्पताल लाया गया तो उसकी भी इलाज के दौरान ही मौत हो गई थी।
इस तरह होती है शासन की राशि योजनओं पर खर्च –
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों में होने वाली डिलेवरी पर 16 हजार रूपए दो किस्त में दिए जाते हैं। पहली किरुत 4 हजार रुपए की राशि गर्भावस्था के दौरान निर्धारित अवधि में अंतिम तिमाही तक दिए जाते हैं। डॉक्टर या एएनएम द्वारा प्रसव पूर्व जांच कराने पर यह राशि दी जाती है। जबकि दूसरी किश्त 12 हजार रुपए की राशि सरकारी अस्पताल में प्रसव होने नवजात शिशु का संस्थागत जन्म के बाद पंजीयन कराने और शिशु को टीकाकरण के बाद मिलती है। यह राशि कुल १६ हजार रुपए होती है।
जागरूकता की कमी से होती है मौत-
सभी महिलाओं को प्रसव के दौरान वह खाने पीने के साथ पेट में पल रहे बच्चे व स्वयं का पूरा ध्यान रखें। अधिकांशत: प्रसव के चलते महिलाओं में खून की कमी हो जाती है। महिलाएं आंगनवाड़ी केंद्रों से लेकर जिला अस्पताल या समीप के स्वास्थ्य केंद्र में स्वयं का चैकअप नहीं कराती हैं। जिससे जच्चा-बच्चा की जान को बचा पाना असंभव हो जाता है। शासन की योजनाओं का लाभ प्रत्येक हितग्राही को लेना चाहिए।
डॉ. ममता तिमोरी – सिविल सर्जन
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फैक्ट फाइल
जिला अस्पताल में होने वाले प्रसव के दौरान सितंबर तक कुल ६२१० प्रसव जिला अस्पताल में कराए गए। जिसमें जिला अस्पताल में होने वाले प्रसव के दौरान २११ नवजात ऐसे रहे जिनकी कोख में ही मौत हो गई। चाहकर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। इसके पीछे विभाग अलग-अलग कारण बताती नजर आ रही है।
इन प्रसूताओं को नहीं बचाया जा सका –
प्रसूताओं का सुरक्षित प्रसव कराना भी एक बड़ी जिम्मेवारी होती है। प्रसव के दौरान भी प्रसूता को बचा पाने में कई बार अस्पताल प्रबंधन असफल साबित होता है। सरकारी रिकॉर्ड देखा जाए तो वर्ष २०१९ में सितंबर तक ४ प्रसूताओं की मौत हो चुकी है। मौत का कारण प्रसव के दौरान हाइब्लड प्रेशर, खून की कमी सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आई है।
बच्चा की मौत पर दी कोतवाली में शिकायत –
जिला अस्पताल में ८ सितंबर रविवार को भर्ती कराई गई एक महिला की कोख में नवजात की मौत होने के बाद उसे जिला अस्पताल से निजी अस्पताल ले जाया गया था। गोवर्धन अहिरवार नामक व्यक्ति ने बताया था कि उसकी बेटी प्रियंका पति रवि अहिरवार का प्रसव के पूर्व जिला अस्पताल में नवजात की मौत हो गई थी। जिसको लेकर नवजात की कोख में ही मौत होने पर अस्पताल प्रबंधन को जिम्मेवार ठहराते हुए एक शिकायत कोतवाली में भी दी थी। हालांकि बाद में इस मामले में प्रबंधन ने अपना पक्ष रखकर मरीजों के परिजनों को ही लापरवाही बरतना बता दिया था। दूसरे मामले में प्रसूता कुंती बाई पति प्रीतम कुर्मी (३०) निवासी चरखारी गढ़ाकोटा का प्रसव गढ़ाकोटा स्वास्थ्य केंद्र में हुआ था। जिसमें बेटी को जन्म देने के बाद नवजात की मौत हो गई थी। उसके प्रसूता की स्थिति गंभीर होने पर उसे गढ़ाकोटा से दमोह जिला अस्पताल रेफ र किया गया। लेकिन जब महिला को जिला अस्पताल लाया गया तो उसकी भी इलाज के दौरान ही मौत हो गई थी।
इस तरह होती है शासन की राशि योजनओं पर खर्च –
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों में होने वाली डिलेवरी पर 16 हजार रूपए दो किस्त में दिए जाते हैं। पहली किरुत 4 हजार रुपए की राशि गर्भावस्था के दौरान निर्धारित अवधि में अंतिम तिमाही तक दिए जाते हैं। डॉक्टर या एएनएम द्वारा प्रसव पूर्व जांच कराने पर यह राशि दी जाती है। जबकि दूसरी किश्त 12 हजार रुपए की राशि सरकारी अस्पताल में प्रसव होने नवजात शिशु का संस्थागत जन्म के बाद पंजीयन कराने और शिशु को टीकाकरण के बाद मिलती है। यह राशि कुल १६ हजार रुपए होती है।
जागरूकता की कमी से होती है मौत-
सभी महिलाओं को प्रसव के दौरान वह खाने पीने के साथ पेट में पल रहे बच्चे व स्वयं का पूरा ध्यान रखें। अधिकांशत: प्रसव के चलते महिलाओं में खून की कमी हो जाती है। महिलाएं आंगनवाड़ी केंद्रों से लेकर जिला अस्पताल या समीप के स्वास्थ्य केंद्र में स्वयं का चैकअप नहीं कराती हैं। जिससे जच्चा-बच्चा की जान को बचा पाना असंभव हो जाता है। शासन की योजनाओं का लाभ प्रत्येक हितग्राही को लेना चाहिए।
डॉ. ममता तिमोरी – सिविल सर्जन
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फैक्ट फाइल
वर्ष -कुल जन्में -मृत जन्में बच्चे -कुल प्रसूताओं की मौत ० से ५ साल तक के बच्चों की मौत –
२००८ ४४७८ २३३ १३ ७२
२००९ ४८३४ २२१ १३ १०६
२०१० ५४०४ २५७ ०७ १०७
२०११ ५५३६ २७५ ०४ १०१
२०१२ ५३८३ २०१ ०६ १६८
२०१३ ६००३ १७७ ०६ १५१
२०१४ ६२१० २०५ ०७ १४८
२०१५ ६३८८ १७५ ०३ १६९
२०१६ ६२९६ २४० ०३ २३१
२०१७ ६४९८ २१८ ०४ २७९
२०१८ ७२११ २२६ ०३ २६५
२०१९ ६२१० २११ ०४ २३५ (सितंबर माह तक)
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२००८ ४४७८ २३३ १३ ७२
२००९ ४८३४ २२१ १३ १०६
२०१० ५४०४ २५७ ०७ १०७
२०११ ५५३६ २७५ ०४ १०१
२०१२ ५३८३ २०१ ०६ १६८
२०१३ ६००३ १७७ ०६ १५१
२०१४ ६२१० २०५ ०७ १४८
२०१५ ६३८८ १७५ ०३ १६९
२०१६ ६२९६ २४० ०३ २३१
२०१७ ६४९८ २१८ ०४ २७९
२०१८ ७२११ २२६ ०३ २६५
२०१९ ६२१० २११ ०४ २३५ (सितंबर माह तक)
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