मडिय़ादो. हटा क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाएं जमीनी हकीकत पर एक सपना साबित हो रही हैं। ग्रामीण अंचलों में मैदानी अमला सेवाएं देने से दूर हट रहे हंै।
मडिय़ादो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अंतर्गत आने वाले उपस्वास्थ्य केंद्र नारायणपुरा, चौरईया, पाली, अमझिर अधिकांश समय ताले में कैद रहते हैं। यहां मरीजों को बीमार होने पर 20 से 30 किमी दूरी तय कर अस्पताल पहुंचना पड़ता है।
्रसरकार की मंशानुसार संस्थागत प्रशव कराने की मंशा पर भी पानी फिर रहा है। क्योंकि उपस्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर नहीं होने की स्थिति में गर्भवति महिलाओं को इन उप स्वास्थ्य केंद्रों से कोई मोह नहीं है। अधिकांशत: गांवों में आज भी अस्पताल की अपेक्षा घरों में ही दाइयों के सहारे प्रसव हो रहे हैं। जटिल स्थिति होने पर जच्चा और बच्चा दोनों की जान पर बन आती है। इसके बाद ही मजबूरी में अस्पताल पहुंचते है।
मुख्यालय पर नहीं रहता स्टॉफ
शासन के निर्देश हैं कि स्टॉफ मुख्यालय पर रहे, तो ही उसे वेतन दिया जाए। लेकिन हालात ऐसे हैं कि सप्ताह में एक बार उपस्वास्थ्य केंद्रों के ताले खोल उपस्थिति रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर एएनएम वेतन ले रही है। दूसरी ओर जिम्मेदार अधिकारी निरीक्षण किए बिना इन लापरवाह कर्मचारियों को वेतन दे रहा है। नतीजतन गांवों में बीमारों , प्रसूताओं को इलाज नहीं मिल पाता और गरीब इधर-उधर भटकर इलाज कराने विवश हैं।
ग्रामीण अंचलों में हालात ओर भी बदतर हो चुके हंै। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में गरीब लोगों को नीम हकीमों के शरण में पहुंच कर मोटी रकम देकर इलाज कराना मजबूरी है।
दाइयों के भरोसे मां और नवजात की जान
संस्थागत प्रसव की बजाय ज्यादातर प्रसव असुरक्षित हालातों में घर में हो रहे हैं। हटा ब्लॉक के ग्रीमण अंचलों में 50 से 60 फीसदी प्रसव दाइयों के द्वारा घरों पर ही कराए जा रहे हैं। इस बात को स्वास्थ्य विभाग भी स्वीकार कर रहा है। गौरतलब है कि मातृ मृत्यु दर रोकने के मकसद से प्रसव स्वास्थ्य केंद्र में कराने पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन जब स्वास्थ्य केंद्रों में स्टॉफ ही नहीं है तो यह संभव कैसे हो सकता है।
यही कारण है कि अधिकांश प्रसव दाइयां कराती हैं।
दिखवाते हैं
सभी उपस्वास्थ्य केंद्रों में एएनएम की पोस्ंिटग हो चुकी है यदि एएनएम लापरवाही कर रहीं हैं तो गलत है। इसे दिखवाते हैं। लापरवाही सामने आती है तो निश्चित कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. पीडी करगैया सीबीएमओ
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