इल्ली की चार अवस्था होती हैं। प्रथम व द्वितीय अवस्था (इंस्टार) इन दो अवस्थाओं की इल्ली का नियंत्रण आसान होता है, लेकिन तीसरे व चौथे अवस्था (इंस्टार) में इसका नियंत्रण कठिन होता है। क्योंकि यह काफी बड़ी व मजबूत हो चुकी होती है। इसके बाद प्यूपा (शंखी) अवस्था के बाद तितली बनकर उड़ जाती है।
इधर कृषि अधिकारी व कृषि वैज्ञानिक किसानों की इस बात पर इत्फाक नहीं रखते हैं कि बाजार में उपलब्ध दवाएं अमानक हैं और इल्ली को मारने के लिए कारगर नहीं है। इस संबंध में ये दोनों विभाग किसान की लापरवाही मानते हैं। किसान वैज्ञानिक द्वारा अनुसंशित दवा व सही मात्रा में छिड़काव करें। सही दवा व सही मात्रा न होने से कीट नियंत्रण नहीं हो पाता है। फलत: किसान की पूंजी व श्रम बर्बाद होता है। इधर बाजार में अमानक दवाई कम दाम में उपलब्ध होने से भी किसान अमानक दवा खरीद लेता हैं फिर उसके हाथ पछतावा के अलावा कुछ नहीं रह जाता है।
उपसंचालक कृषि बीएल कुरील का कहना है कि कृषि विभाग के कीटनाशक निरीक्षकों द्वारा लगातार दुकानों का निरीक्षण कर सैंपल लिए गए हैं। जिले में रबी सीजन में कुल 80 सेंपल लिए गए थे जिनमें से 50 की रिपोर्ट मानक स्तर की आई है, 30 के सेंपल आना शेष है। हम लगातार अमानक दवाओं का विक्रय रोकने के लिए फील्ड पर काम कर रहे हैं।
इन दवाओं से मरेगी इल्ली
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजेश द्विवेदी किसानों को सलाह देत हैं कि यदि चना व मटर में इल्ली का शुरुआती प्रकोप दिखाई दे तो प्रोपेनोफास 40 ईसी 500 मिली एक एकड़ की दर से छिड़काव करें। यदि इल्ली बहुत बड़ी हो गई हो तो इमामेक्टिन वेन्जोऐट पांच एसजी (व्यापारिक नाम प्रोक्लेम, वेन्जर) 100 ग्राम एक एकड़ की दर या फ्लूमेंडामाइड (व्यापारिक नाम फेम, फ्लूट्रान, मिसाइ) 100 मिली एक एकड़ की दर से छिड़काव करें। एक एकड़ में 150 से 200 लीटर पानी की मात्रा भी होनी चाहिए।
वर्जन
जिले में इल्ली का प्रकोप बढ़ रहा है। मैदानी अमला इसके निदान के लिए किसानों को सलाह दे रहा है। यदि दवाओं के छिड़काव असर नहीं हो रहा है तो इसके पीछे छिड़काव के पंप व पानी की मात्रा में गड़बड़ी के कारण यह स्थिति बन सकती है। जिले में सभी दवाएं मानक स्तर की उपलब्ध हैं।
बीएल कुरील, उपसंचालक कृषि दमोह