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दमोह

देहरादून की टीम करेगी जानवरों की गिनती, अवैध कटाई, खनन पर भी फोकस

भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की टीम तीन जून तक करेगी सर्वे

दमोहMay 22, 2019 / 12:05 am

Sanket Shrivastava

Indian Wildlife Institute Dehradun to be conducted by June 3

Indian Wildlife Institute Dehradun to be conducted by June 3

मडिय़ादो. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली के निर्देशानुसार पन्ना टाइगर रिजर्व के बफर के संरक्षित क्षेत्रों में 21 मई से 3 तीन जून तक भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की टीम द्वारा पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर व बफर क्षेत्र में फेज 4 के तहत मानीटरिंग का कार्य प्रारंभ किया जा रहा है।
इसके बाद 29 मई से 3 जून तक समस्त बीटों में ट्रांजेक्ट एवं वेजीटेशन तथा साइन सर्वे का कार्र्य होगा। जिसमें वन्यजीवों की गणना की जाएगी। मुख्य फोकस तेंदुआ और बाघों पर होगा।
वर्ष में दो बार होता है यह सर्वे: वर्ष में यह गणना दो बार की जाती है। इसमें मुख्य रूप से यहांं पता लगाया जाएगा कि जंगल में कहां बाघ और तेंदुओं के रहवास हैं और किन रास्तों से यहां आते-जाते हंै। इसके साथ वनों में होने वाली अन्य गतिविधियों का भी सर्वे के दौरान पता लगाया जाएगा।
जैसे वनों में पेड़ों की कटाई या अवैध खनन की जानकारी एकत्रित की जाएगी।
ऐसे होती है गणना
सबसे पहले 3 किमी लंबी ट्रांजिट लाइन खींचते हैं, बीट प्रभारी सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक इसी लाइन पर हर 400 मीटर की दूरी पर बाएं घूमकर 10 मीटर दूर एक गोला बनाते हैं। भ्रमण के बाद अगले तीन दिनों तक इस परिधि में प्राप्त होने वाले वन्यजीवों की विष्टा, अपशिष्ट पदार्थ छोड़ी गई खाद्य सामग्री के नमूने के साथ ही पद चिन्हों के फोटोग्राफ लेकर उनका विवरण दर्ज करते हैं। इसे एक फॉमेंट में भरकर और नमूने देहरादून रिसर्च सेंटर भेजते हैं। बाघ और तेंदुओं की जानकारी जुटाने के लिए कुछ अलग तकनीक अपनाई जाती है। वन क्षेत्र में कैंमरे लगाने के साथ उनकी आवाज भी रिकार्ड की जाती है।
देहरादून में होती है रिसर्च
वन्यजीवों की गणना तीन चरण में होती है। पहले चरण में वन्यजीवों की विष्टा अपशिष्ट पदार्थ, छोड़ी गई खाद्य सामग्री के नमूने, पद चिह्न व अन्य जानकारी एकत्रित की जाती है। दूसरा व तीसरा चरण देहरादून रिसर्च सेंटर में होता है। यहां विभिन्न स्थानों से प्राप्त नमूने व अन्य जानकारियों की जांच होती है। सेंटर में तस्वीरों की जांच व सेटेलाइट की मदद से वन्य जीवों के बारे में जानकारी जुटाते हैं। सेंटर की रिपोर्ट दिल्ली के वन्य जीव प्रोजेक्ट डायरेक्टर को भेजते हैं। दिल्ली में रिपोर्ट पर अंतिम मुहर लगाकर जिले में भेजी जाती है। यही गणना का आधार है।

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