lok sabha election 2019 : मायके जाएगी बहू-बेटियां,महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ाना बड़ी चुनौती
दमोहPublished: May 03, 2019 06:32:06 pm
लोकतंत्र का महापर्व होगा प्रभावित
lok sabha election 2019 : मायके जाएगी बहू-बेटियां,महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ाना बड़ी चुनौती
हटा. विधानसभा चुनाव की तरह मतदान प्रतिशत बढ़ाने जिला निर्वाचन कार्यालय काफी मशक्कत कर रहा है। महिला एवं बाल विकास विभाग के आंगनबाड़ी केंद्रों की कार्यकर्ता व सहायिका भी मशक्कत कर रही है। महिलाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाने के मामले में स्वीप प्लान की गतिविधियां खटाई में पड़ सकती है। क्योंकि मतदान की तारीख से पहले ही ज्यादातर महिलाएं अपने बच्चों के साथ मायके का रुख कर सकती हैं। मतदाता जागरुकता अभियानों में इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यदि घर-घर जाकर पहले मतदान फिर जाएं मायके का नारा दिया होता तो महिलाओं का प्रतिशत कम नहीं होता।
गर्मी की छुट्टी का रहता है इंतजार
प्रतिस्पर्धा के दौर में स्कूली बच्चे वैसे तो साल भर व्यस्त रहने लगे हैं। स्कूलों की परिपाटी भी पिछले कुछ सालों से बदल गई है। जिसकी वजह से वार्षिक परीक्षा के बाद भी उन्हें अनिवार्य रूप से 30 अप्रैल तक स्कूल जाना ही होता है। आगामी 15 जून से नया शैक्षणिक सत्र प्रारंभ हो जाएगा ऐसे में बच्चों को नानी दादी के घर जाने के लिए बहुत ही कम समय मिलता है। स्कूलों में लगातार बढ़ते चैलेंज के कारण कई बार बच्चे छुट्टियों में भी मेहमानों के यहां जाने में आनाकानी करते हैं। ऐसे में स्कूलों में ग्रीष्मकालीन अवकाश होने के तत्काल बाद ही महिलाएं बच्चों को लेकर मायके जाने की योजना बना लेती हैं। इस बार भी महिलाओं ने 30 अप्रैल के बाद या तो परिवार के साथ आउटिंग या फिर मायके जाने की प्लानिंग की है। ऐसे में महिलाओं को मतदान केंद्र तक लाना प्रशासन के लिए चुनौती से कम नहीं है। 6 मई को मतदान के लिए ज्यादातर महिलाओं की मतदान केंद्रों पर न पहुंचने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
मांगलिक कार्यक्रमों का भी असर.
लोकसभा चुनाव के साथ-साथ इन दिनों शादियों के मुहूर्त भी कम नहीं है। ऐसे समय में करीबी परिवारों या रिश्तेदारों में विवाह होने पर पूरा परिवार मंडप के दिन से पहुंच ही जाता है। विवाह मुर्हूत 5, 6 और 7 मई को हैं। ऐसे में मतदान प्रतिशत का ग्राफ विधानसभा चुनाव की तुलना में गिरने की आशंका बनी हुई है। हालांकि रैलियों व विभिन्न प्रतियोगिताओं के अलावा नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लोगों को जागरुक करने के प्रयास होते नजर आ रहे हैं, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि परिवार आयोजनों के सामने लोगों को मतदान केंद्र तक पहुंचाना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।