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आधुनिकता के इस दौर में देवी देवता भी हो रहे हैं रीसाइकल

locationदमोहPublished: Oct 11, 2019 08:07:02 pm

Submitted by:

pushpendra tiwari

त्योहारों तक ही सीमित लोगों की आस्था

आधुनिकता के इस दौर में देवी देवता भी हो रहे हैं रीसाइकल

देवी देवताओं को भी रीसाइकल किया जा रहा

दमोह. यह सुनने में भले ही अचरज हो लेकिन हकीकत यही है कि आधुनिकता के इस दौर में देवी देवताओं को भी रीसाइकल किया जा रहा है। तीन दिनों पहले विजयादशमी पर देवी प्रतिमाओं का विसर्जन शहर के फुटेरा तालाब पर किया गया था। लोगों ने अपनी आस्था को जाहिर करते हुए नौ दिनों तक कठिन व्रत रखे और दसवें दिन प्रतिमाओं का विसर्जन विधि विधान से किया। उधर तालाब से विसर्जित कीं गईं प्रतिमाओं को लोगों द्वारा तालाब के बाहर निकाल लिया गया और प्रतिमाओं के ढांचे पुन: मूर्तिकारों के यहां पहुंच गए। जिन्होंने तालाब से प्रतिमाओं के ढांचे निकाले उन्हें कुछ रुपयों की आय मूर्तिकारों से हो गई साथ तालाब की सफाई में भी इनका विशेष योगदान हो गया। लेकिन मूर्तिकारों के पास पहुंचे यह ढांचे दोबारा प्रतिमाओं का रुप लेंगे। इस संबंध में शहर के एक मूर्तिकार ने बताया है कि लकड़ी और चारे से प्रतिमाओं का ढांचा तैयार किया जाता है। तालाब में प्रतिमा विसर्जित होने के बाद मिट्टी निकल जाती है और लकड़ी का ढांचा शेष रह जाता है। इसे दोबार काम में लेते हैं और आने वाले आगामी त्योहार के लिए प्रतिमाएं तैयार करना शुरु कर दीं जातीं हैं। मूर्तिकार ने बताया कि कुछ माह बाद होली उत्सव होना है जिसमें होलिका की प्रतिमाएं बनाई जाएंगी जिनमें यह ढांचे उपयोग में ले लिए जाएंगे। प्रतिमाओं को तैयार करने का कार्य करीब तीन से चार माह पहले शुरु कर दिया जाता है।
प्राप्त इस जानकारी से यह माना जा सकता है कि प्रतिमाओं को रीसाइकल कर लिया जाता है जिससे मूर्तिकारों को पुन: प्रतिमा बनाने में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है। वहीं लोगों की आस्था की बात करें तो लोगों की आस्था एक त्योहार तक ही सीमित रहती है। जिन प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद अगले दिन तालाब की जो स्थिति होती है उसे कोई देखना पसंद नहीं करता है।
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