दमोह

हर साल रोपे जाते हैं लाखों पौधे, हजार भी नहीं बन पाते पेड़

सागौन व मिश्रित वन में बांस व आंवला भी नहीं दिख रहे वन रोपणियों में

दमोहJul 04, 2021 / 10:08 pm

Rajesh Kumar Pandey

Millions of plants are planted, even thousands of trees cannot be made

दमोह. दमोह जिले वन विभाग हर साल लाखों को पौधारोपण वन रोपणियों में करता है। इन रोपणियों में सागौन व मिश्रित पौधों का रोपण कागजों में दर्शाया जाता है। लेकिन जमीन पर मैदान साफ दिखाई देता है। बात 2019-2020 में रोपे गए पौधों की करें तो 16 लाख 17 हजार 868 पौधों का रोपण वन विभाग के 12 कक्षों में किया गया था। इन कक्षों में वर्तमान में 15 फीसदी पौधे ही पेड़ बनते दिखाई दे रहे हैं।
वन विभाग के पौधरोपण वर्ष 2019-2020 में 7 हजार 427.16 हेक्टेयर में पौधरोपण कराया गया था। जिसमें 6 लाख 12 हजार 402 सागौन पॉलीपोटेड पौधे शामिल थे। साथ ही 13 हजार 200 सागौन रूट सूट पौधों का रोपण किया गया था। इसके अलावा 83 हजार 990 बांस के पौधे, 82 हजार 590 आंवला के अलावा अन्य प्रजातियों के पौधे शामिल थे। जो छायादार व फलदार पौधे भी शामिल थे। जिले वन बीटों के 12 कक्षों में रोपे गए यह एक साल का हिसाब-किताब है। यहां बारिश के पूर्व हर साल भारी भरकम बजट से पौधरोपण कराया जाता है, पिछले 10 साल का हिसाब किताब देखें तो वन रोपणियों में सपाट मैदान ही दिखाई देते हैं। पौधरोपण कार्य की जांच भी होती हैं, लेकिन मौसम व अन्य समस्याओं के कारण पौधों को मृत घोषित कर दिया जाता है फिर पौधरोपण का बजट बनाया जाता है।
16 हजार सागौन में से 1600 भी नहीं
पत्रिका ने सगौन वन परिक्षेत्र की बीट कुलवा आरएफ कक्ष क्रमांक 420 के कैंपा वृक्षारोपण लखनी लखनी की पड़ताल कराई तो आगे पाठ पीछे सपाट मामला ही दिखाई दिया। यहां पर 2019-2020 में कुल रकबा 54 हेक्टेयर में 54 हजार पौधे लगाए गए थे। जिसका सूचना पटल भी लगाया गया था। जिसमें सागौन के पौधे 16 हजार 200 व मिश्रित 37 हजार 800 पौधे लगाए जाने का उल्लेख किया गया है। मौके पर वन रोपणी देखने पर महज 1600 सागौन के पौधे भी पेड़ बनते नहीं दिख रहे हैं। पुराने पौधों को पेड़ बनाने के बजाए नई जगह पर वनीकरण 2020-2021 के लिए 60 हजार गड्ढे खुदवा दिए गए थे, जो जांच में 40 हजार ही निकले थे। इसी तरह बंदरकोला में भी हाल ही में पौधरोपण कराने गड्ढे कराए गए हैं, जहां दशाई संख्या से भी कम गड्ढों में पेड़ लगाए गए थे, जो अब सूख चुके हैं।
सागौन रूटस में होते हैं करोड़ों खर्च
वन समितियों से जुड़े लोग बताते हैं कि दमोह जिला सघन सागौन वन परिक्षेत्र माना जाता है। हर साल उजाड़ हो चुके सागौन के वन परिक्षेत्र फिर से तैयार करने के लिए फाइलें तैयार होती हैं, करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। जिसमें सागौन के रूट सूट पौधों का रोपण किया जाता है। एक सागौन के पौधे को पेड़ बनने में करीब 18 साल का समय लग जाता है। इतना लंबा अंतराल होने के कारण ही सागौन रोपण के मामले में हेराफेरी की जाती है। इसी तरह की स्थिति अन्य प्रजातियों के पौधों में होती है, जिससे सालों से हर साल बारिश के पूर्व लाखों पौधों का रोपण होने के बाद वन रोपणियां दूर से ही खाली दिखाई देती हैं।
बोगनबिलियां व खरपतवार से हरियाली
वन रोपणी में खरपतवार बोगन बिलिया से हरियाली दिखाई देती है। 2019-2020 में तेंदूखेड़ा वन रोपणी का मामला जिला पंचायत सदस्य ने उठाया था, जिसमें सागौन व मिश्रित पौधों के बजाए बोगन बिलिया ही दिखाई दे रही थी। जिसकी जांच भी हुई लेकिन कार्रवाई नहीं होने के कारण पौधरोपण की हेराफेरी का मामला दबा लिया गया था।
अल्प बारिश के बहाने से बचाव
दमोह जिले के सभी वनपरिक्षेत्रों के रेंजरों से जब वनीकरण के मामले में पौधरोपण की संख्या और मौके पर महज कुछ पौधों की मौजूदगी पर सवाल किया गया तो सभी का एक सा जवाब था कि पिछले साल समय पर बारिश नहीं हुई अल्प बारिश के कारण पौधे नष्ट हो गए। वहीं इस साल एक माह पहले ही 2 जून से पौधरोपण शुरू कराए जाने के मामले में इनका तर्क है कि पहले बारिश आ जाने के कारण पौधे रोपे गए हैं, अब बारिश नहीं हो रही है तो नया पौधरोपण भी सूखने लगा है।

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