वहीं यह भी देखा जा रहा है कि वन माफियाओं को अभयारण्य इसलिए भी वरदान साबित हो रहा है क्योंकि वह तीन जिलों की सीमाओं का लाभ उठा रहे हैं।
भारी भरकम सागौन के लिए जाना जाता है नौरादेही
इस अभयारण्य की स्थापना 1975 में की गई थी। बताया गया है कि यह अभयारण्य में 1200 वर्ग किमी तक फैला हुआ है। इस अभयारण्य में काफी पुराने भारी भरकम वृक्ष लगे हुए हैं। जबकि काफी संख्या में ऐसे ही पेड़ों की कटाई हो चुकी है। स्थिति यह है कि कभी सागौन के लिए अपनी पहचान बनाने वाले इस अभयारण्य में अब सागौन विलुप्त होने की कगार की ओर अग्रसर हो चला है। आए दिन सागौन की कटाई के मामले सामने आ रहे हैं।
वर्षो से चल रहा पेड़ो का कत्लेआम
इस अभयारण्य की सर्रा, झापन, नौरादेही रैंजो में सागौन की अवैध कटाई वन माफियाओं द्वारा लगातार की जा रही है। कटाई करने के बाद वन माफियाओं द्वारा बेधड़क होकर ऐसे वृक्षो को जबलपुर, सागर सहित अन्य स्थानों पर ले जाया जा रहा है। वहीं वन विभाग के चैंकिग बेरियल होने के बाद भी इन्हें नही पकड़ा जा पा रहा है। पूर्व में सर्रा और झापन रैंज अंतर्गत तिंदनी, ग्वारी में सैकडों वृक्षों का कत्लेआम आरा मशीन से किया गया था। सबसे पहले वन माफिया वृक्षों की पूजा अर्चना करते है और नारियल चढ़ाकर वृक्षो का कत्लेआत कर देते हैं। कटाई के बाद जब वन अमला ठूंठों की गिनती करने पहुंचता है तो मौके पर पूजन सामग्री ही पड़ी मिलती है। लगातार हो रही इस कटाई को रोकने में सुरक्षा बल नाकाम बना हुआ है।
प्रतिदिन काटे जा रहे सागौन के वृक्ष
नौरादेही अभयारण्य अंतर्गत आने वाले सर्रा रैंज मे आज भी सागौन के वृक्षों का कत्लेआम किया जा रहा है। इस परिक्षेत्र में गांव के कुछ लोगों द्वारा भी वृक्षों को काटकर साइकिलो, मोटर साइकिलों से परिवहन किया जाता है। वहीं ग्रामीणों द्वारा यह आरोप हमेशा से ही लगाए जा रहे हैं कि सागौन की तस्करी का कार्य अभयारण्य के कर्मचारियों की मिलीभगत से हो पा रहा है।
इसका वन माफिया उठा रहे लाभ
नौरादेही अभयारण्य दमोह, सागर व नरसिंहपुर जिलों की सीमाओं में शामिल है। जिलों की सरहदों का लाभ वन माफियाओं द्वारा भरपूर उठाया जा रहा है। यदि बात दमोह जिले के सीमा क्षेत्र की करें तो इस जिले से अवैध कटाई की लकड़ी जबलपुर जिले के लिए भेजी जा रही है। वहीं हाल ही के कुछ घटनाक्रमों में यह बात सामने आई है कि अवैध कटाई को अंजाम देने वाले माफिया जब घटना को अंजाम दे रहे होते हैं व काटी गई लकड़ी का परिवहन कर रहे होते हैं तो उस दौरान वह हथियारों से लेस होते हैं जो कभी जानलेवा हमला कर देते हैं। सूत्रों के मुताबिक आरोपियों के हथियारों से लेस होने का डर भी सुरक्षा कर्मियों में बना रहता है।
बाघों की मौजूदगी भी नहीं आ रही काम
नौरादेही में इन दिनों तीन बाघ खुले में घूम रहे हैं। जब इन बाघों को लाया जा रहा था, उस दौरान डीएफओ, सीसीएफ यह बात कह रहे थे कि बाघों की मौजूदगी का असर अवैध कटाई की रोकथाम में होगा। लेकिन ऐसा नहीं होना सामने आ रहा है। जिस स्तर पर अभयारण्य में कटाई का सिलसिल चल रहा है उससे यह बात साफ जाहिर है कि अवैध कटाई करने वाले आरोपियों को बाघों की मौजूदगी से फर्क नहीं पड़ रहा है। उलटा बाघों की सुरक्षा को ऐसे में खतरा अवश्य सामने आ रहा है।
वर्जन
अभयारण्य में यदि कीमती सागौन की कटाई वन माफियाओं द्वारा की जा रही है, तो में सर्रा रैंज की बीटो की जांच करवाता हूं, यदि किसी कर्मचारी की मिलीभगत सामने आती है तो उस पर भी कार्रवाई की जाएगी।