बगैर पिंचिंग के डबरानुमा तलैया खोदकर हो रहा जंगल में पानी का संचय
दमोहPublished: Jul 05, 2021 10:57:19 pm
तालाब और तलैया निर्माण पर लाखों खर्च फिर भी नहीं मिल पाता पानी
pond was constructed without pinching
दमोह. वन मंडल दमोह के वन परिक्षत्रों की बीटों में पौधों की सिंचाई और वन्यप्राणियों की प्यास बुझाने के लिए जलसंरक्षण के कार्यों पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। पिछले 5 साल में एक-एक बीट में कम से कम 25 से अधिक छोटी-छोटी तलैया खुदवाई गई हैं। इन तलैयों में बगैर पिंचिंग कराए केवल मशीनों से गड्ढे कर कार्य की इतिश्री कर ली गई है।
वन विभाग हर साल पेड़ों व वन्य प्राणियों को संरक्षित करने के लिए लाखों रुपए खर्च करता है। वन विभाग के रेंजर, डिप्टी रेंजर व बीट गार्ड इस कार्य में हेराफेरी करते हैं। जंगल में मोर नाचा किसने देखा, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए जितने भी जलसंरक्षण के कार्य कराए गए हैं, वह न ही पौधों के सींचने लायक जल संग्रहित कर पाते हैं और न ही इन जलस्रोतों में नवंबर माह से बारिश आने तक पानी बचता है।
पिंचिंग कार्य की होती है अनदेखी
वन विभाग में पिछले 5 साल से जितनी भी तलैयों का निर्माण कराया गया है, उनमें पिंचिग कार्य नहीं कराया गया है। वन परिक्षेत्रों के कक्षों में तलैयों की गहराई भी नहीं कराई जाती है। पहले से गहराई वाली जमीन को देख लिया जाता है, फिर उसे उथला खोदकर छोड़कर बारिश का इंतजार किया जाता है। जब कभी यदि जांच होती है तो बारिश के दौरान पिंचिंग कार्य क्षतिग्रस्त होने या कार्य के दौरान पानी गिरने से पिंचिग कार्य न कराए जाने का उल्लेख कर दिया जाता है।
कैंपा मद के दो तालाबों की नहीं हुई पिंचिंग
नोहटा बीट के गाड़ाघाट में कैंपा मद से वनीकरण के पास 20-20 लाख रुपए की लागत से दो तालाब का निर्माण कराया गया था। इन तालाबों में तौकते से तालाब लबालब भर गए थे, बगैर पिंचिंग के तालाब की पार फूट गई तो अर्थमूवर से पार बंधवाने के नाम पर पूरे तालाब खाली कराए गए थे, जिस दौरान डिप्टी रेंजर मुरारीलाल विश्वकर्मा ने कहा था कि पिंचिंग कार्य कराया जा रहा है। करीब एक माह बीत गया है, दोनों तालाबों में पिंचिंग का कार्य नहीं कराया गया है। दोनों तालाब में महज 10 लाख रुपए का कार्य कराकरण करीब 30 लाख रुपए की हेराफेरी की जा चुकी है।
25 तलैया बगैर पिचिंग की मिली
सगौनी वन परिक्षेत्र की कुलुआ बीट में करीब 25 तलैया ऐसी मिली हैं, जिनमें पिंचिंग का कार्य नहीं कराया गया है। जेसीबी से गहराई कराकर छोड़ दिया गया है। इन तलैयों के निर्माण में 5 से 20 लाख रुपए के बीच 5 साल के अंदर किया गया है। व्यापक पैमाने पर हुई इस गड़बड़ी पर अभी तक पर्दा डला हुआ है। इस संबंध में डीएफओ से लेकर एसडीओ व रेंजर से लेकर उडऩदस्ता टीम को जानकारी है, लेकिन किसी ने भी उक्त भ्रष्टाचार की परते उधडऩे का प्रयास नहीं किया गया है।
आबादी की ओर आते हैं वन्य प्राणी
वन परिक्षेत्रों में ताल व तलैयों का घटिया निर्माण होने से वह पहली ही बारिश में जल राशि सहेज नहीं पाते हैं। जिससे ग्रीष्म ऋतु आते-आते यह सूख जाते हैं। जंगलों में पानी की उपलब्धता न होने के कारण प्यासे वन्यप्राणी आबादी के ईद-गिर्द जलस्रोतों का रुख करते हैं और वहां पर लोगों के शिकार बन जाते हैं। या हिंसक वन्य प्राणी गांव के नजदीक आने से लोगों के ऊपर हमला करते हैं। इसके अलावा वन रोपणियों के लिए पानी नहीं मिल पाता है, जिससे लगाए गए पौधे सूख जाते हैं।
कार्रवाई नहीं होती है
वन विभाग द्वारा बनाए गए तालाब निर्माण में अनेक बार खामियां आती हैं। वन परिक्षेत्र के सभी कार्यों को रेंजर व डिप्टी रेंजरों द्वारा कराया जाता है। यहां सिर्फ मटेरियल के टेंडर होते हैं। लेकिन रेंजर व डिप्टी रेंजर वन समिति के अपने विश्वासपात्र सदस्यों को मौखिक कार्य करने के लिए बोल देते हैं। इस दौरान कई खामियां आती हैं, लेकिन इन खामियों के दोषियों पर कार्रवाई न करते हुए कार्य में या तो सुधार कर लिया जाता है। या अत्याधिक बारिश को कारण मानकर मरम्मत कार्य का प्रस्ताव तैयार कर भूल सुधार कर ली जाती है।