24 जून को मुगलों से लड़ते शहीद हुईं थीं रानी दुर्गावती
दमोहPublished: Jun 23, 2021 11:05:37 pm
24 जून 1564 को ली आखिरी सांस
Rani Durgavati was martyred fighting the Mughals on June 24
दमोह/ बनवार. सिंग्रामपुर में रानी दुर्गावती का किला है, जिससे सभी वाकिफ हैं। लेकिन बहुत ही कम लोगों को रानी दुर्गावती के कुलदेवी स्थान की जानकारी है, जहां आध्यत्मिक शक्ति प्राप्त कर मुगलों की सेना से लोहा लेकर अपना जीवन आन-बान-शान के लिए बलिदान कर दिया था। आज ऐसी गौरव गाथा लिखने वाली रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस है। सिंग्रामपुर स्थित प्रतिमा स्थल पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। जिसमें श्रद्धासुमन अर्पित किए जाएंगे।
सिंग्रामपुर से 3 किलोमीटर की दूरी पर भैंसाघट रेस्टहाउस से पश्चिम में निदानकुंड जाने वाले रास्ते के विपरीत दिशा में यह दार्शनिक पुण्य स्थल है, जो 500 साल 13 वीं शताब्दी का है। वीरांगना रानी दुर्गावती की कुलदेवी का स्थान है। जहां पर आज भी मढ़ा के एक पत्थर पर दुर्गा मां की पत्थर की प्रतिमा रखी है। मढ़ा के पास दो शिवलिंग के साथ हनुमान की प्रतिमा है। पहाड़ी के नीचे कभी न खाली होने वाला जलकुंड है। जलकुंड से लगी पत्थरों की सीढिय़ां है। पूर्वज बताते है कि यह स्थान रानी की कुलदेवी का है। जहां पर रानी दुर्गावती प्रतिदिन नीचे के कुंड से जल भरकर देवी को चढ़ाती थीं। मढ़ा की स्तिथि भले ही खंडहर मैं तब्दील हो गई है। हालांकि इस स्थान के जीर्णोद्धार और सड़क मार्ग बनाए जाने का प्रस्ताव है। मढिय़ा मढ़ा मंदिर नाम से जागृत स्थान बताया जाता है। जहां पर रानी दुर्गवती नित्य पूजा करने को आती थीं। उनकी कुलदेवी दुर्गा मां प्रतिमा आज भी विराजमान हंै। मढ़ा के पास दो शिवलिंग हैं। जिनमें एक दिव्य शिवलिंग जलहरी में विराजमान है। दूसरे शिवलिंग की जलहरी खंडित हो गई है। लेकिन शिव ***** पूरी तरह से सुरक्षित पत्थरों के बीच है। वही एक हनुमान जी प्रतिमा भी है। रानी दुर्गावती के किले से ठीक सामने की पहाड़ी के नीचे एक जलकुंड है। जिसके जल को भरकर रानी बावन बजरिया मेंं बैठी कुल देवी को नित्य जल अर्पण करके पूजा करती थी। जिसके अवशेष आज भी मढिय़ा के इर्दगिर्द बिखरे पड़े हंै। मढ़ा के पत्थरों पर उकरी स्पष्ट दिखाई देती है।
24 जून 1564 को ली आखिरी सांस
रानी दुर्गावती की वीरगाथा आज भी दमोह जिले के सिंग्रामपुर में रानीदुर्गावती का किला कहता हुआ नजर आ रहा है। हालांकि अब इसका कायाकल्प हो रहा है और राष्ट्रपति द्वारा जीर्णोद्धार किए जाने से यह देश दुनिया की नजरों में आया है। मुगल शासकों में अकबर को अपने पराक्रम का लोहा मनवाने वाली रानी दुर्गावती की गाथा से गौंडवंशी आज भी अपने आपको को गौरवान्वित महसूस करता है। रानी दुर्गावती का जन्म 1524 में हुआ था और वह कलिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। गौंडवाना के राजा संग्रामशाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था। 4 साल बाद राजा दलपत शाह का निधन हो गया। रानी दुर्गावती ने अपनी राजधानी सिंग्रामपुर गढ़ को बनाया। दुर्गावती का पराक्रम सौंदर्य की जानकारी अकबर को लगी तो उसने अपना सूबेदार भेजा। जिसने रानी को सोने का पीजन भेजा। रानी इसका जवाब भेजा तो वह तिलमिला उठा। जिसके बाद भयंकर युद्ध हुआ जिसमें 24 जून 1564 को रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुईं।