सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र इन तीनों की एकता मोक्ष मार्ग कहलाती है : आचार्य श्री निर्भय सागर
दमोहPublished: Jul 21, 2020 08:51:03 pm
मोहनीय कर्म के उदय से आशक्ति बढ़ती है।
आचार्यश्री निर्भय सागर महाराज
दमोह. शहर की जैन धर्मशाला में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए सोमवार को आचार्यश्री निर्भय सागर महाराज ने कहा कि मोहनीय कर्म के उदय से आशक्ति बढ़ती है। आशक्ति मूर्छा पैदा करती है। इसलिए संतों ने मोह को माया जाल कहा है। मोह पर हावी होने वाली वैरागी विवेकी आध्यात्म पुरूष भी होते हैं। इन पर मोह का कोई वस नहीं चलता, जो मोह के वसीभूत होते हैंं वे भविष्य बिगाड़ देते हैं। पुण्य के उदय में पाप कर्म को बांध लेते हैं। पाप कर्म दु:ख के रूप में फलित होते हैं, क्योंकि जो जैसा करता है वैसे कर्मो को बांधता है और फिर वैसे ही फल को भोगना पड़ता है। आत्मा से पाप घुल जाने पर परमात्मा का रूप प्रकट हो जाता है। जाप के समय मन को एकाग्र रखना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा श्रावण का मास चल रहा है। यह श्रमणों की साधना का श्रेष्ठ कार्य है और श्रावकों की आराधना का काल है। वैष्णव समाज के अनुसार इस माह में श्रावण सोमवार को विशेष महत्व दिया है। कुछ लोग कावड़ लेकर एक माह के लिए तीर्थ यात्रा के लिए पैदल निकलते हैं। यदि श्रावण मास में सोमवार को अमावस्या पड़ जाए तो ज्योतिष के अनुसार सोने में सुहागा माना गया है। इस समय मौन रहकर मन्ंत्र जाप अधिक से अधिक करना चाहिए। ध्वजारोहण प्रत्येक धार्मिक कार्य के रूप में और राष्ट्र के विशेष पर्वो पर अवश्य किया जाता है। ध्वजारोहण मुक्ति पथ पर आरोहण का प्रतीक है । ध्वजा का डंडा सम्यक ज्ञान का प्रतीक है और लहराती हुई ध्वजा सम्यक चारित्र का प्रतीक है। सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान,सम्यक चारित्र इन तीनों की एकता मोक्ष मार्ग कहलाती है। इसलिए जैन ध्वजा मोक्ष मार्ग का प्रति निधित्व करती है। धर्म ध्वजा धर्म देवता की प्रतीक है। जब डंडे में कपड़ा लपेट दिया जाए और केरोशीन से गिला कर दिया जाये तो जलने पर मशाल बन जाती है।