script85 साल की उम्र नहीं फैलाती हाथ, झुकी कमर पर लादती है लकड़ी का बोझा | The age of 85 does not spread the hand, the load of wood is loaded | Patrika News

85 साल की उम्र नहीं फैलाती हाथ, झुकी कमर पर लादती है लकड़ी का बोझा

locationदमोहPublished: Aug 06, 2021 10:42:37 pm

Submitted by:

Rajesh Kumar Pandey

95 साल के भाई का कर रही उदर पोषण

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दमोह. 85 साल की ढलती उम्र झुकी कमर लाठी का सहारा झुकी कमर पर लकडिय़ों का बोझा लादे वृद्धा को राजनगर रैयतवारी, भड़ावारी, आमचौपरा के आसपास लकडिय़ां बेचते हुए देखा जा सकता है। यह वृद्धा किसी के आगे मदद के लिए हाथ नहीं फैलाती है, वह अपना और अपने 95 साल के भाई का पालन करने के लिए आखिरी सांस तक मेहनत करने का जज्बा रखे हुए है।
भड़ावारी कीरत गांव निवासी वृद्ध महिला बिटाई आदिवासी (85) के पति का निधन 40 साल पहले हो गया था। इनका एक बेटा था जिसका भी निधन हो गया। जिसके बाद बहू छोड़कर चली गई। वृद्धा के बड़े भाई चंदू आदिवासी (95) साल के हैं, जिनकी पत्नी का निधन हो गया है, इनकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए बहन अपने भाई के पास रहने लगी। वह भड़ावारी कीरत, राजनगर से लगे जंगलों में जाकर लकडिय़ां एकत्रित करती है और फिर लकडिय़ों का बोझा लेकर रोज बेचने जाती है। इससे जो रुपए मिलते हैं उससे वह स्वयं व भाई का पेट भरती है। हालांकि भाई भी 95 साल की उम्र में गांव में छोटा मोटा काम करने के लिए प्रयासरत रहते हैं लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिलता है। जिससे घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी वृद्धा बिटाई आदिवासी ने अपनी झुकी कमर पर ही उठा रखी है। वह जंगल से लौटने के बाद खाना भी पकाती है, घर के सभी काम करती है।
वृद्धा बिटाई बाई की अत्याधिक उम्र देखकर उन्हें काम करते हुए लोग उनसे काम पर न जाने के लिए भी कहते हैं, लेकिन वह मुस्कुराते हुए कहती है कि भैया जब तक हाथ-गोड़े चलत है तब तक वह जंगल से लकड़ी लाकर बेचना नहीं छोड़ेगी।
भड़ावारी कीरत गांव निवासी कीरत यादव ने बताया कि वृद्धा बिटाई की बड़ी उम्र देखकर गांव के लोग उनकी मदद करने का प्रयास करते हैं, लेकिन वह मुस्कुराते हुए मदद तो ले लेती है, लेकिन किसी के सामने हाथ नहीं फैलाती है। शुक्रवार को रिमझिम बारिश हो रही थी। इसके बाद भी वृद्धा दोपहर में जंगल की ओर जा रही थी, जिसे रोका गया कि भीगते हुए नहीं जाओ लेकिन वह नहीं मानी और जंगल की ओर लकडिय़ां बीनने निकल गई।
जीवटता की मिसाल है वृद्धा बिटाई
भड़ावारी कीरत गांव के लोगों के लिए वृद्धा बिटाई की जीवन के प्रति जीवटता देखकर मिसाल दिखती है, जिससे गांव में जितने भी वृद्ध हैं यदि वह शासकीय कार्य से सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं, लेकिन वह अपने शरीर की जंग लगाने के बजाए कुछ न कुछ कार्य करते रहते हैं। बिटाई बाई जीवन के आखिरी पड़ाव में भी मेहनत मजदूरी कर ही अपने उदर पोषण के लिए रुपए जुटाती है। वह कभी अपनी जरुरत पडऩे पर लोगों के सामने हाथ नहीं फैलाती है। यदि कोई व्यक्ति उसे कुछ मदद करना चाहता है तो वह ले लेती है, कभी मना नहीं करती है।
बोझा के बाद चेहरे पर मुस्कान
गांव के लोग बताते हैं कि बिटाई बाई की खास बात यह है कि वह कमर पर लकड़ी का बोझा लादकर जब आती हैं, तब उनके चेहरे पर तनाव या थकावट नहीं दिखाई देती हैं, वह हमेशा मुस्कुराते हुए चलती जाती हैं, लोग चलते-चलते कहते हैं कि ये बऊ अब ने करों काम, लेकिन वह मुस्कुराते हुए आगे बढ़ती जाती है, बिटाई की यही दिनचर्या प्रतिदिन चलती रहती है और जंगल से लकडिय़ां लाकर अपना घर का चूल्हा जला रही है।
 
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