लोकसभा में भी दोनों दलों में दावेदारों को लेकर बढ़ रहा टेंशन
विधानसभा की तरह लोकसभा में बागी दे सकते हैं टशन
The last two elections have been cut by the current MPs
दमोह. भाजपा की 40 साल से गढ़ बनी दमोह लोकसभा में कांग्रेस व भाजपा दोनों दलों में प्रत्याशी के चयन को लेकर टेंशन बना हुआ है। दोनों दलों से दावेदारी कर रहे प्रत्याशियों के नफा – नुकसान पर गहन मंथन किया जा रहा है। इस सीट से केवल दो नाम ही कांग्रेस व भाजपा से ऐसे हैं, जिन्हें पुन: रिपीट किया गया है, शेष में मौजूदा सांसद की टिकट काटकर नया चेहरा उतारने की रणनीति के तहत विजय पताका फहराई जाती रही है।
दमोह लोकसभा सीट में 1952 में सहोद्रा राय को कांग्रेस ने टिकट दी वह जीतीं, इसके बाद इन्हें रिपीट किया, लेकिन 1957 में ज्वाला प्रसाद जिजोतिया से चुनाव हार गईं। 1962 में फिर सहोद्रा राय को मैदान में उतारकर कांग्रेस ने जीत हासिल की, लेकिन 1967 के चुनाव में उन्हें मौका न देकर मणिभाई पटेल को मौका देकर कांग्रेस ने सीट अपने पाले में की थी। 1971 के चुनाव में कांग्रेस दो फाड़ हुई उस दौरान दोनों कांग्रेस ने मौजूदा सांसद की टिकट काटी और पूर्व राष्ट्रपति के पुत्र बाहरगिरी शंकरी गिरी को मैदान से उतारकार कांग्रेस जगजीवन राम ने जीत हासिल की थी। 1977 के चुनाव में बारहगिरी दमोह से चुनाव नहीं लड़े उनकी जगह कांग्रेस ने विठ्ठल भाई पटेल को टिकट दी, लेकिन भारतीय लोकदल के नरेंद्र सिंह ने इस चुनाव में बाजी मार ली थी। 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने प्रभुनारायण टंडन को मैदान में उतारा और वह सांसद बने। इसके बाद 1984 में डालचंद जैन को टिकट दी गई थी, भाजपा ने 1977 में विजयी सांसद नरेंद्र सिंह को रिपीट किया, लेकिन वे चुनाव हार गए। 1989 में कांग्रेस ने डालचंद जैन को रिपीट किया लेकिन व भाजपा द्वारा उतारे गए नए चेहरे लोकेंद्र सिंह से चुनाव हार गए। इन्होंने ही भाजपा का अभेद किला बनाने की महती भूमिका निभाई थी। 1991 के चुनाव में इनकी टिकट काटकर डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया को मैदान में उतारा इसके बाद इन्हें तीन बार फिर रिपीट किया गया। जिससे वह 1991 से 1999 तक दमोह के सांसद रहे। भाजपा ने 2004 में नया चेहरा चंद्रभान सिंह को मैदान में उतारा और जीत हासिल की। इसके बाद इन्होंने दल बदला और कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े तो उन्हें 2009 में भाजपा के नए चेहरे शिवराज लोधी ने शिकस्त दे दी थी। 2014 में प्रहलाद सिंह पटैल अप्रत्याशित चेहरा रहे और वह दमोह से सांसद चुने गए हैं।
संयोग यह भी चाचा जीते भतीजे हारे
दमोह लोकसभा सीट में एक संयोग यह भी है कि सागर के दो बीड़ी उद्योगपति घरानों से दमोह लोकसभा से चाचा और भतीजे चुनाव लड़े, लेकिन चाचा तो जीते भतीजों को हार का सामना करना पड़ा है । 1967 में दमोह से कांग्रेस की और से मणिभाई पटेल ने चुनाव लड़ा और सांसद बने लेकिन 1977 में जब उनके भतीजे विठ्ठल भाई पटेल को कांग्रेस से टिकिट मिला तो वो चुनाव हार गए। ऐसे में ही 1984 में बीड़ी उद्योगपति डालचंद जैन दमोह के सांसद चुने गए जो अगला चुनाव हार गए थे, उनके भतीजे नरेश जैन को 1998 के लोकसभा चुनाव में दमोह से कांग्रेस के उम्मीदवार थे, जो भाजपा के डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया से चुनाव हार गए थे।
वर्तमान में इसी को लेकर भाजपा में हो रहा मंथन
पिछले 40 साल से भाजपा अपना अभेद गढ़ बना चुकी दमोह लोकसभा को किसी भी हालात में अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती है। हालांकि भाजपा के अंदरखाने में यह चल रहा है कि यदि वह मौजूदा सांसद प्रहलाद सिंह पटेल को बालाघाट से चुनाव लड़ाती है तो वह फिर अभिषेक भार्गव व जयंत मलैया के बजाए किसी लोधी को ही मैदान में उतार सकती है। हालांकि अंदरखाने में पैनल से बाहर एक नाम दबी जुबान राघवेंद्र सिंह ऋषि लोधी का भी उछल रहा है। इधर मौजूदा सांसद प्रहलाद सिंह पटेल दमोह लोकसभा से ही अपनी प्रबल दावेदारी कर रहे हैं। भले ही उनका विरोध हो, लेकिन वह मोदी फैक्टर व अपनी साफगोई छवि से पुन: अपनी जीत निश्चित मान रहे हैं। इधर सूत्रों के अनुसार भाजपा दमोह लोकसभा से अपने दावेदारों के नाम नामांकन प्रक्रिया 10 अप्रैल के एक दो दिन पहले ही घोषित करेगी। भाजपा यदि मौजूदा सांसद की टिकट में बदलाव करती है तो एक दो दिन के अंदर ही बालाघाट सीट से उनके नाम की घोषणा कराई जा सकती है, ताकि उन्हें नए क्षेत्र में जमावट का मौका मिल सके।
कांग्रेस चलेगी अपना राजा बचाने की चाल
दमोह लोकसभा सीट की राजनीतिक चौसर पर पिछले 40 साल से उसका राजा मात खाता रहा है। इस बार कांग्रेस अपना राजा बचाने की तैयारी में चुनावी चाल रही है। हालांकि उसका टिकट वितरण को लेकर फोकस लोधी या कुर्मी जाति पर ही ज्यादा नजर आ रहा है। जिस पर वह अपनी नजर पूर्व जबेरा विधायक प्रताप सिंह पर टिकाए हुए हैं। इधर भाजपा छोड़ आए डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया के बारे में भी मंथन चल रहा है, लेकिन कांग्रेस का झुकाव लोधी जाति के उम्मीदवार पर ज्यादा चल रहा है, हालांकि व दमोह विधायक राहुल सिंह के नाम पर भी विचार कर रही है। वहीं सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस दमोह विधानसभा की तरह नया चेहरा भी मैदान में उतार सकती है। जिसमें लोधी जाति से डॉ. जया सिंह व कुर्मी जाति से मानक पटेल का नाम भी आगे बढ़ाया जा रहा है। ब्राह्मण जाति से राजा पटेरिया व मुकेश नायक के नाम आ रहे हैं, लेकिन इनके नाम काफी पीछे बताए जा रहे हैं।
बागी भी बिगाड़ सकते हैं बड़े दल का खेल
कांग्रेस व भाजपा में टिकट को लेकर असंतोष की आग बराबर से जल रही है। विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में लोधी या कुर्मी जाति से यदि कोई कद्दावर बागी मैदान में कूद पड़ा और उसने 40 से 50 हजार वोटों का झटका दे दिया तो कांग्रेस या भाजपा के घोषित प्रत्याशी की जीत को हार में तब्दील कर सकता है। इस स्थिति को भांपते हुए भी कांग्रेस व भाजपा काफी मंथन करने के बाद ही दमोह लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित करने के मूड में नजर आ रही है।
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