दमोहPublished: Jul 02, 2020 08:34:05 pm
Sanket Shrivastava
सर्वे में 750 वन्यप्राणी सालाना सड़क हादसे की वजह से मौत के घाट उतरने की सच्चाई आई थी सामने
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दमोह. अपनी बायो डायवर्सिटी के लिए नौरादेही अभयारण्य अपना अलग स्थान कायम किए हुए है। लेकिन यहां वन्य जीवों के लिए 22 किमी का स्टेट हाइवे जान का दुश्मन बना हुआ है। इस हाइवे का निर्माण अभयारण्य से होकर निकलने वाले मार्ग की गाइडलाइन के अनुरूप नहीं किया गया है, जिसकी वजह से सड़क हादसों में वन्यजीवों की जान जा रही है।
इसकी हकीकत विभाग द्वारा करीब डेढ़ साल पहले कराए गए एक सर्वे में सामने आई थी। जिसके बाद विभाग द्वारा एमपीआरडीसी को गाइडलाइन के तहत सड़क में सुधार करने के लिए पत्राचार किया।
करीब एक साल तक चली इस कवायद के बाद एमपीआरडीसी द्वारा सड़क में कुछ स्थानों पर गतिअवरोधक बनाए गए हैं। ऐसा विभाग के अधिकारी बता रहे हैं। लेकिन जो गाइड लाइन है उसका अभी भी पूर्णत: पालन नहीं हुआ है जिसकी वजह से सड़क हादसे में अभयारण्य के वन्य जीवों की जान जाने का सिलसिला जारी है।
जानलेवा बना हाइवे
वर्तमान में नौरादेही के वन्य जीवों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। 22 किमी के स्टेट हाइवे पर वन्य जीव आए दिन वाहनों का शिकार होकर मौत के घाट उतर जाते हैं। अभयारण्य में वन्य जीवों को सड़क क्रास करने के दौरान खतरा बना रहता है।इस तरह हाइवे के पास चहलकदमी करने वाले वन्यजीवों का जीवन खतरे में रहता है। बता दें कि वन विभाग द्वारा वाइल्ड लाइफ गाइडलाइन के अनुसार सड़क निर्माण करने पर सहमत होने पर दी गई थी।
लेकिन सड़क निर्माण के दौरान उस वक्त मौजूद अधिकारियों ने मॉनीटिरिंग नहीं की जो अब वन्य जीवों की मौत का करण बन रही है। वन विभाग के द्वारा करीब डेढ़ साल पहले किए गए एक सर्वे में सामने आया था कि अभयारण्य के भीतर हाइवे पर रोजाना औसतन दो वन्यजीवों की हादसे में मौत हो जाती है। सामने आया है कि अभयारण्य से निकले मार्ग से पानी निकासी के लिए पुलियों की ऊंचाई वन्य जीवों के हिसाब से नहीं रखी गई। जिससे बारिश के दौरान जीवों को यहां खतरा रहता है।
सशर्त मिली थी अनुमति
अभयारण्य के अंदर सड़क निर्माण के लिए वन विभाग द्वारा एमपीआरडीसी को सशर्त इजाजत दी गयी थी। सशर्त अनुमति में कहा गया था कि सड़क निर्माण में वाइल्ड लाइफ की गाइडलाइन का पूरा करना होगा। बता दें कि यह सड़क मार्ग प्रोजेक्ट 220 करोड़ रुपए की लागत में तैयार हुआ है। यही कारण है कि वन विभाग के अधिकारियों को सड़क के मामले मेें राजनीतिक दबाव झेलना पड़ता है।