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वैदिक मंत्रोच्चारण कर 600 साल पुरानी इस परंपरा के बाद शुरू हुआ फागुन मड़ई, पढ़ें खबर

locationदंतेवाड़ाPublished: Jan 23, 2018 11:41:28 pm

दंतेश्वरी मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ त्रिशूल स्थापना के बाद फागुन मड़ई की हुई शुरुआत।

600 साल पुरानी परंपरा के बाद शुरू हुआ फागुन मड़ई

600 साल पुरानी परंपरा के बाद शुरू हुआ फागुन मड़ई

दंतेवाड़ा. बसंत पंचमी पर मांई दंतेश्वरी के मंदिर में पूजा अर्चना की गई। साथ ही मंदिर के सामने त्रिशूल की स्थापना हुई। इस दिन से ही फागुन मड़ई का आगाज होता है। फागुन मड़ई को लेकर टेंपल कमेटी की पूरी तैयारी हो चुकी है। स्तंभ के समक्ष आम बौर अर्पण कर दशकों पुराने तांबे का त्रिशूल स्थापित किया गया। पुजारियों ने कहा बसंत पंचमी को त्रिशूल स्तंभ स्थापना की जाती है। इसके बाद फागुन मंडई की शुरूआत होती है। यह परंपरा 600 साल से चली आ रही है। मंदिर परिसर में गरूड़ स्तंभ के समक्ष स्थापित करने के बाद मांईजी की सरस्वती के रूप में पूजा होती है। देवी भगवती का प्रतीक माने जाने वाला त्रिशूल शुद्ध तांबे का है। राजा पुरुषोत्तम देव ने आंध्रप्रदेश के वारंगल से त्रिशूल लेकर आए थे।
वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ त्रिशूल स्तंभ स्थापित
प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया के मुताबिक बसंत पंचमी पर मां दंतेश्वरी मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ त्रिशूल स्तंभ स्थापित किया जाता है। बसंत पंचमी के अवसर पर त्रिशूल स्तंभ स्थापना के साथ ही दक्षिण बस्तर की ऐतिहासिक फागुन मंडई मेला शूरू होता है। त्रिशूल जिस लकड़ी के स्तंभ पर त्रिशुल स्थापित है, वह भी 200 साल से अधिक पूराना बताया जा रहा है। पूजारी का कहना है कि फागुन मंडई व होलिका दहन के बाद त्रिशूल और स्तंभ को माईजी के शयन कक्ष में सुरक्षित रख दिया जाता है। इस लकड़ी पर समय-समय पर घी का लेप करना होता है।
नारियल भेंट कर अभिवादन की परंपरा भी
बसंत पंचमी पर दंतेश्वरी मांई की पूजा करने के बाद उनके छत्र पर आम्र बौर अर्पित किया गया। पुजारी व सेवकों ने मांईजी की अनुमति से छत्र को मंदिर से बाहर निकाला। पारंपरिक गाजे-बाजे के साथ रैली की शक्ल में छत्र को बस स्टैंड चौक ले जाया गया। श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की और आम के बौर अर्पण किए। एक-दूसरे को नारियल भेंट कर अभिवादन की परंपरा निभाने की रस्म भी पूरी की। कार्यक्रम के बाद छत्र को वापस मंदिर लाया गया। इस रस्म को आमा माउड़ी कहा जाता है। इसे बड़े धूम-धाम से मनाते हैं।
मांझी-मुखिया व अधिकारियों की मौजूदगी में प्रधान पुजारी की ताजपोशी
फागुन मड़ई के आगाज व बसंत पंचमी को मां दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी के रूप में हरेंद्रनाथ जिया की ताजपोशी की गई। इसदौरान 12 लंकवार, मांझी, मुखिया और प्रशासनिक अधिकारी भी मौजूद रहे। लोगों ने सोमवार को पुजारी हरेंद्रनाथ जिया को अपना प्रधान पुजारी के रूप में स्वीकार किया। अब मंदिर में सभी धार्मिक अनुष्ठान व पूजा-अर्चना हरेंद्र नाथ जिया की देखरेख में होगी। प्रधान पुजारी के साथ अब तीन सहायक पुजारी भी होंगें।
30 साल से अधिक की मां की सेवा
शक्तिपीठ मांई दंतेश्वरी मंदिर में रियासतकाल से जिया परिवार ही पूजा पाठ करता आ रहा है। इसी परिवार के हरिहरनाथ जिया प्रधान पुजारी की नवरात्र के पहले दिन मौत हो गई। इन्होंने करीब 30 साल से अधिक मां की सेवा की थी। इसके बाद से प्रधान पुजारी के रूप में कोई नहीं था। अब बसंत पंचमी पर सहायक पुजारी रहे हरेंद्रनाथ जिया को नया प्रधान पुजारी नियुक्त किया गया। इसके लिए क्षेत्र के सभी मंदिर पुजारी, 12लंकवार, समाज प्रमुख और मांझी-मुखिया ने अपनी सहमति दी। त्रिशूल स्थापना रस्म के बाद हरेंद्रनाथ जिया को पगड़ी और तिलक लगाकर प्रधान पुजारी के पद पर बैठाया गया। इस कार्यक्रम में प्रशासन की ओर से एसडीएम डॉ. सुभाष राज और तहसीलदार गौतम सिंह भी मौजूद थे।
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