नक्सलियों द्वारा अब तक मचाई गई तबाही और संगठन की रणनीतियों को समझने के लिए दंतेवाड़ा पुलिस ने पहली बार ब्रेन मैपिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया है। दंतेवाड़ा एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव, जो स्वयं मनोचिकित्सक हैं, ने यह प्रयोग करने की पहल की। इसके तहत आत्म समर्पण करने वाले 5 लाख से ज्यादा इनामी राशि वाले 41 नक्सलियों से चुनिंदा प्रश्नों की प्रश्नावली से जवाब तलाशने की कोशिश की गई।
सर्वे में निकले दिलचस्प निष्कर्ष
– भर्ती की औसत आयु 15 साल 2 महीने, क्योंकि ज्यादातर भर्ती 18 वर्ष से पहले
– 70 फीसदी से ज्यादा की संगठन में भर्ती जबरिया दबाव बनाकर
– आटोमेटिक हथियार थमाने की औसत उम्र 17 वर्ष 2 माह और सेमी ऑटोमेटिक हथियार थमाने की औसत उम्र साढ़े 20 वर्ष ।
– 25 फीसदी यानी एक चौथाई को परिजनों से मिलने की अनुमति नहीं
– 30 फीसदी नक्सलियों को 5 साल में सिर्फ एक बार घर जाने की अनुमति मिली
– किसी भी उत्सव के दौरान घर जाने की अनुमति नहीं
– किसी को उनके परिजनों के बीमार होने पर भी घर जाने की अनुमति नहीं
– 20 फीसदी से भी कम को परिजनों की मृत्यु पर घर जाने की मुश्किल से मिली।
– 25 फीसदी को उनकी सहमति के बगैर नसबंदी करा दी
– उनकी स्वयं की मर्जी से संगठन छोडऩे की अनुमति नहीं
– 30 फीसदी ने स्वीकार किया कि स्थानीय और तेलुगु भाषी नक्सली कैडर के बीच आपसी विवाद और मतभेद
लोन वर्राटू और बदलेम एड़का का नवाचार
एसपी डॉ पल्लव ने साल भर पहले नक्सलियों को सरेंडर के लिए प्रेरित करने लोन वर्राटू यानी घर लौट आइए अभियान शुरू किया था, जिसमें अब तक 116 इनामी समेत कुल 429 नक्सली सरेंडर कर चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने बदलेम एड़का यानी बदलता मन अभियान भी शुरू किया, जिसमें ब्रेन मैपिंग के जरिए आत्म समर्पित नक्सलियों में ब्रेन मैपिंग के जरिये रेडिकलिज्म का स्तर पता करने और इसे दूर करने डी-रैडिकलाइजेशन का कार्यक्रम भी शुरू किया था।
ऐसे होती है भर्ती
एसपी डॉ अभिषेक पल्लव का कहना है कि नक्सली 15-16 साल की उम्र में सीधे पीएलजीए या मिलिशिया सदस्य के तौर पर भर्ती करते हैं। उन्हें 3 स्तर की ट्रेनिंग मिलती है। पहले 4 हफ्ते की ट्रेनिंग के बाद नए कैडर को 12 बोर, सिंगल शॉट या 303 रायफल थमा दिया जाता है। दूसरे चरण में बड़े इंस्ट्रक्टर 8 हफ्ते की ट्रेनिंग में एम्बुश, काउंटर एम्बुश जैसी तकनीक सिखाते हैं। इसके बाद साल भर में कमांडर पद पर ऑटोमेटिक वेपन के साथ नियुक्त कर दिया जाता है। फिर 2 से 4 हफ्ते का रिव्यू कोर्स हर साल चलता रहता है।
ऐसे होगा सर्वे के निष्कर्षों का इस्तेमाल
एसपी के मुताबिक नकसलियों के पीएलजीए सप्ताह के दौरान यह सर्वे कराया गया है। अब गांव-गांव जाकर इस सर्वे के निष्कर्षों से ग्रामीणों को अवगत कराया जाएगा कि एक बार नक्सलवाद के दलदल में फंसने के बाद संगठन को अपनी मर्जी से नहीं छोड़ सकते हैं। सिर्फ मौत ही मिलना तय है।