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छत्तीसगढ़ के इस प्राचीन मंदिर में कभी दी जाती थी नरबलि, तांत्रिकों की आज भी है मुख्य साधना स्थली

locationदंतेवाड़ाPublished: Sep 29, 2021 05:12:53 pm

Submitted by:

Dakshi Sahu

Maa Danteshwari Temple: मंदिर प्रागण में नदी के समीप आठ भैरव भाईयों का आवास माना जाता है। इसलिए इसे तांत्रिकों की साधना स्थली माना जाता है।

छत्तीसगढ़ के इस प्राचीन मंदिर में कभी दी जाती थी नरबलि, तांत्रिकों की आज भी है मुख्य साधना स्थली

छत्तीसगढ़ के इस प्राचीन मंदिर में कभी दी जाती थी नरबलि, तांत्रिकों की आज भी है मुख्य साधना स्थली

दंतेवाड़ा. भारत के प्राचीन मंदिरों में नरबलि की प्रथा सदियों पुरानी है। सख्त कानून के कारण अब नरबलि की प्रथा बंद कर दी गई है। छत्तीसगढ़ में भी एक प्राचीन मंदिर ऐसा है जहां देवी को प्रसन्न करने के लिए नरबलि दी जाती थी। दंतवोड़ा के प्राचीन दंतेश्वरी मंदिर को देश का 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। यहां सबसे प्राचीन मंदिर का निर्मांण अन्न्मदेव ने करीब 850 साल पहले कराया था। डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार वारंगल से आए पांडव अर्जुन कुल के राजाओं ने करीब 700 साल पहले करवाया था। 1883 तक यहां नर बलि होती रही है। 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था। मंदिर प्रागण में नदी के समीप आठ भैरव भाईयों का आवास माना जाता है। इसलिए इसे तांत्रिकों की साधना स्थली माना जाता है। आदिवासियों की ऐसी मान्यता है आज भी सैकड़ों तांत्रिक जंगल और गुफाओं में साधना कर रहे हैं और गुप्त रूप से वे मां के दर्शन करने आते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार माता सती के गिरे थे दांत
इस शक्ति पीठ के विषय में एक प्राचीन कहानी बताई जाती है। कहा जाता है कि सतयुग में जब राजा दक्ष ने यज्ञ कराया तो उन्होंने भगवान शंकर को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया। सती राजा दक्ष की पुत्री थीं तो उन्होंने अपने पति के इस अपमान से क्षुब्ध होकर अपने पिता के यज्ञ कुंड में खुद की आहुति दे दी। जब भगवान शंकर को इस बारे में पता चला तो वह सती का शव अपनी गोद में लेकर पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करने लगे। भगवान शिव के इस क्रोधित रूप से प्रलय की आशंका को देखते हुए भगवान विष्णु ने चक्र चलाया और सती के शव को खंडित कर दिया। इस दौरान जिन-जिन स्थलों पर सती के अवशेष गिरे, वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। उनमें से दंतेवाड़ा एक है। कहा जाता है कि यहां माता सती के दांत गिरे थे।
छत्तीसगढ़ के इस प्राचीन मंदिर में कभी दी जाती थी नरबलि, तांत्रिकों की आज भी है मुख्य साधना स्थली
दूसरी कहानी
वारंगल के नरेश के छोटे भाई अन्न्मदेव से जुड़ी है, जिन्हें वारंगल राज से निर्वासित कर दिया गया था। जब वे गोदावरी नदी को पार कर रहे थे उस दौरान उन्हें नदी में ही मां दंतेश्वरी की प्रतिमा मिली। तट पर अन्न्मदेव से उस प्रतिमा को रखा और पूजा करने लगे। इसी दौरान देवी साक्षात प्रकट हुईं और अन्न्मदेव से कहा कि मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ, मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चल रही हूं। इसके साथ अन्न्मदेव ने अपने विजय अभियान की शुरूआत की और बस्तर सामाज्य की स्थापना हुई। टेमरा सती शिलालेख में राजा हरिशचंद्र देव (1324 ई) का उल्लेख मिलता है। बारसुर के युद्ध में अन्न्मदेव ने इसी हरिशचंद्र देव को मार डाला और नए राजवंश की बस्तर में स्थापना की।
इस बार भक्तों को मंदिर में नहीं मिलेगा प्रवेश
52 वें शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध बस्तर अंचल के दंतेवाड़ा के मां दंतेश्वरी मंदिर में इस बार भी नवरात्र मे भक्तों को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलेगा। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए दंतेवाड़ा जिला प्रशासन और मंदिर समिति ने यह निर्णय लिया है। 2 साल में यह चौथा नवरात्र होगा कि आराध्य देवी के दर्शन करने भक्त मंदिर नहीं जा पाएंगे। मंदिर समिति ने बताया कि इस साल बार ज्योति ही जलेंगी। मेला भी नहीं लगेगा।
लाइव दर्शन होगा
दंतेवाड़ा कलेक्टर ने बताया कि, आम नागरिकों की सुरक्षा को देखते हुए इस बार पद यात्रा नहीं होगी। सभी भक्तजनों, श्रद्धालुओं को घर बैठे ही दंतेश्वरी माई का दर्शन, माता की आरती, ज्योति कलश का लाइव दर्शन कराएंगे। ताकि कोरेाना की तीसरी लहर की आशंका के बीच लोग अपने-अपने घरों में सुरक्षित रहें।
हर साल हजारों श्रद्धालु करते हैं दर्शन
बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के दर्शन करने केवल बस्तर संभाग ही नहीं बल्कि देश और विदेशों से भी भक्त पहुंचते हैं। नवरात्र के समय दूर दराज से कई भक्त पैदल तो कई घुटने के सहारे चलकर अपनी-अपनी आस्था के अनुसार माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। सबसे ज्यादा पंचमी के दिन भक्तों की भीड़ होती थी।

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