इस इलाके में जैसे ही सड़क सुविधा बहाल होगी, इसके ठीक बाद जवानों की सबसे अहम जरूरत पूरी होगी। मोबाईल नेटवर्किंग पर काम किया जा रहा है। इस समस्या के निराकरण का भी वक्त आ चुका है। जवानों को उन्होंने कहा ग्रामीणों की सुरक्षा और उनकी जरूरतें प्राथमिकता होनी चहिए। ये लोग चंगुल में फंसे हुए है। माओवादियों के चंगुल से निकाल कर इनको बेहतर रास्ते पर लाना है। जहां से वे विकास पथ पर चलें।
वॉच टॉवर भी खुद यहां कि प्रकृति ने फोर्स का दिया है। कमल पोस्ट कैंप उंची पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी पर एक और टेकरी है। इस टेकरी पर जवानों ने लकड़ी का वॉच टॉवर तैयार किया है। इस टॉवर से पहाड़ों का कद भी छोटा दिखता है। इस टॉवर पर दो जवान तैनात होकर आस-पास के इलाके पर आसानी से निगरानी कर सकते हैं। जवानों की बात मानें तो, वे कहते है पहाडिय़ां भी माओवाद की विरोधी हो चुकी है। वे भी अब साथ नही देना चाहती है। इधर आईजी विवेकानंद सिन्हा ने एक रेस्ट हाउस का उद्घाटन किया।
2005 के बाद माओवादियों के कब्जे में आया अरनुपर-जगरगुंडा इलाका अब बहाली की कगार पर है। यह इलाका माओवादी नेता पापा राव का माना जाता है। कभी कोंडासवाली और जोड़ा नाला की पहाड़ी उनकी महफूज पनाहगाह थी। इन दोनों जगह फोर्स बैठ चुकी है। सलवा जुडूम के डेढ़ दशक बाद माओवादियों की जमीन पर खाकी का डेरा है। जोड़ा नाला पर पुल बनेगा। पहले भी इस नाले पर पुल नहीं था। बताया जाता है कि वाहन ऐसे ही निकलते थे। फोर्स के साए में ही इस पुल का निर्माण होगा। जोड़ा नाला पर समांतर पहाडियों से दो अलग झरनों का पानी आता है। जो महज 150 से 200 मीटर की दूरी पर बराबर से दो नालों में बह रहा है। यह पानी शबरी नदी में मिलता है। इसलिए इसे जोड़ा नाला कहा जाता है।