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किसी ने पति खोया तो किसी ने बेटी का बचपन, अब सरेंडर करने के बाद कर रहे मजदूरी

locationदंतेवाड़ाPublished: Aug 15, 2021 08:26:46 am

Submitted by:

Karunakant Chaubey

पुलिस के आक्रामक अभियान और नक्सलियों की ई-कुंडली तैयार कर गांव-गांव जाकर प्रेरित करने के बाद नक्सली टूटते चले गए और लोन वर्राटू अभियान के तहत सरेंडर करने लगे। साल में ही यह संख्या बढ़कर 402 पहुंच चुकी है, जिसमें 162 इनामी नक्सली भी शामिल हैं।

किसी ने पति खोया तो किसी ने बेटी का बचपन, अब सरेंडर करने के बाद कर रहे मजदूरी नक्सली

किसी ने पति खोया तो किसी ने बेटी का बचपन, अब सरेंडर करने के बाद कर रहे मजदूरी नक्सली

दंतेवाड़ा. लाल आतंक की विचारधारा से प्रभावित होकर भूमे, देवा और लक्ष्मी ने दंडकारण्य में खूब उत्पात मचाया। वक्त ने करवट बदली, सोच भी बदली और आज ये लोग मुख्यधारा में लौट आए हैं। अब ये अपने हाथों से खुद का घरौंदा बनाने के लिए मजदूरी कर रहे हैं। ये वही हाथ जिन्होंने कई सरकारी इमारतों को ध्वस्त कर दिया था।

इन्हीं हाथों में कभी इनसास, 303 और एसएलआर रहती, अंगुलियां ट्रिगर पर आंखों में आग। जब ये पीछे मुड़कर देखते हैं तो दंडकारण्य की स्याह रात में इन्हें अपने टूटे हुए सपने दिखाई देते हैं। इनमें से किसी ने अपना पति खोया तो किसी ने बेटी का बचपन। किसी ने अपनी जमीन खो दी तो कोई पढ़ नहीं पाया। आज जब ये मुख्यधारा में लौट आए हैं तो मेहनत कर अपने जीवन के घरौंदे को नए ढंग से संवारने का जतन कर रहे हैं।

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दरअसल, सरेंडर करने वाले नक्सलियों के लिए सरकार ने लोन वर्राटू हब का निर्माण कार्य शुरू किया है। इसमें नक्सलियों के लिए आवासीय क्वार्टर्स के साथ ही व्यवसायिक कॉम्पलेक्स से लेकर मनोरंजन और अन्य जरूरत के भवन बनाए जा रहे हैं। इस हब में मजदूरी करने वाले ज्यादातर मजदूर भी आत्म समर्पित पूर्व नक्सली ही हैं। पत्रिका ने इनमें से कुछ पूर्व नक्सलियों से बातचीत की।

बेटी के लिए छोड़ा जंगल

लक्ष्मी कभी गंगालूर एरिया कमेटी मेंबर थी। उसने यहां पर 9 साल काम किया। लक्ष्मी के पति संतोष उर्फ सोमलू ओयाम को उसके साथी नक्सलियों ने ही मुखबिरी के शक में 2013 में मार डाला। जबकि संतोष डिवीजनल कमेटी सदस्य स्तर का नक्सली था। पति की हत्या ने लक्ष्मी को अंदर से तोड़ दिया। उसे अहसास हो गया उसने गलत रास्ता अख्तियार कर लिया है। उसे अपनी पांच साल की बेटी की चिंता सताने लगी। जंगल और बेटी के बीच उसने अपनी बेटी के भविष्य को चुना और साल भर पहले सरेंडर कर दिया। यहां पर वेतन के साथ रहने की सुविधा पुलिस ने दी है।

भूमे ने स्कूल तोड़े थे, अब लोन वर्राटू में मकान जोड़ रही

झीरम घाटी हमले में शामिल रही भूमे को शुरू से ही हिंसा पसंद नहीं थी लेकिन संगठन के दबाव में उसने ब्लास्ट भी किए, स्कूल भी तोड़े। उसने नक्सली संगठन में रहकर 303, एसएलआर व इनसास की ट्रेनिंग ली। उसकी यही ट्रेनिंग अब नक्सलियों के खिलाफ काम आ रही है। किरंदुल इलाके के हिरोली निवासी भूमे उईके ने पति लिंगा के साथ सरेंडर किया था। पति-पत्नी दोनों अब डीआरजी दस्ते में शामिल रहकर नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के अभियान का हिस्सा बन गए हैं। भूमे संगठन में रहकर रास्तों पर ब्लास्ट कर उन्हें ब्लॉक करती थी। अब जिंदगी के नए रास्तों पर वह अपने पति के साथ चल पड़ी है।

देवा को लगता है गांव जाने से मार देंगे

देवा ने मजबूरी में नक्सलियों की बैठक जाना शुरू किया फिर वह संगठन का हिस्सा बन गया। इस दौरान उसने अपनी कई रातें जंगल और गांव की पहरेदारी में कुर्बान कर दीं। इन्हीं रातों ने उसके सपने छीन लिए गांव की जमीन भी चली गई। उसके बड़े भाई और बहन को नक्सलियों ने गांव से भगा दिया। अब वह न गांव जा सकता है न जंगल। क्योंकि गांव जाते ही नक्सली उन्हें मार डालेंगे। उसका कहना था कि नक्सली के तौर पर रात भर गांव-जंगल में घूमने वाली जिंदगी से यह जिंदगी बेहतर है। इसलिए उसने खुद को सरेंडर कर लिया। अब उसकी आंखों में नींद भी है और उसमें सपने भी।

नक्सली हिंसा रास नहीं आई गंगाराम को

नक्सलियों के लिए कभी मौत का सामान सप्लाई करने वाले गंगाराम की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। सातवीं तक पढ़ाई की फिर नक्सलियों ने लिए काम करना शुरू कर दिया। दिल में कसक थी आगे पढऩे की लेकिन तरीका नहीं मालूम था। फिर नक्सलियों को गंगाराम पर संदेह हुआ तो मारने के लिए नक्सलियों ने उसके घर को घेर लिया। खुशकिस्मती से गंगाराम उस दिन गांव में नहीं था इसलिए बच गया। लेकिन गांव के एक अन्य युवक को नक्सलियों ने मार दिया। इसके बाद उसकी हिम्मत जवाब दे गई, और उसने सरेंडर कर दिया।

लोन वर्राटू को मिली आशातीत सफलता

बता दें कि दक्षिण बस्तर जिला दंतेवाड़ा में पिछले साल भर में 402 नक्सली सरेंडर कर चुके हैं। यह संभव हुआ राज्य शासन के सहयोग से जिला पुलिस द्वारा शुरू किए गए लोन वर्राटू यानि घर लौट आइए अभियान से। मनोचिकित्सा में पीजी डिग्रीधारी एसपी डॉ अभिषेक पल्लव ने यह पहल की। पुलिस के आक्रामक अभियान और नक्सलियों की ई-कुंडली तैयार कर गांव-गांव जाकर प्रेरित करने के बाद नक्सली टूटते चले गए और लोन वर्राटू अभियान के तहत सरेंडर करने लगे। साल में ही यह संख्या बढ़कर 402 पहुंच चुकी है, जिसमें 162 इनामी नक्सली भी शामिल हैं।

इतनी बड़ी संख्या में सरेंडर से दक्षिण बस्तर में नक्सली संगठन की कमर टूट गई है। लोन वर्राटू अभियान से प्रेरित होकर सरेंडर कर रहे नक्सलियों को मुख्यधारा से जुड़कर बेहतर जिंदगी जीने का अवसर दिया जा रहा है। नक्सलियों को राज्य सरकार की बेहतर पुनर्वास नीति का लाभ मिल रहा है। लोन वर्राटू हब भी इसी दिशा में एक कदम है, जिसमें एक ही परिसर में सुरक्षित आवास और रोजगार के अवसर मिलेंगे।

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